सनातन धर्म – भारतीय संस्कृति एवं हिन्दुत्व का मूल आधार है सनातन

सनातन धर्म

सनातन धर्म को अपने हिन्दू धर्म के वैकल्पिक नाम से भी जाना जाता हैं। सनातन धर्म आदि और अनन्त काल से चला आ रहा हैं। यह किसी एक ऋषि, मनीषी या दार्शनिक के विचारों की उपज नहीं है। न ही यह किसी विशेष समय की उपज हैं। यह तो अनादि काल से चला आ रहा हैं। 

सनातन

सनातन का अर्थ है  – शाश्वत या सदा बने रहने वाला अर्थात् जिसका न आदि है न अन्त। Sanatan can translate as ” the natural and eternal way to live ” या फिर इसे इस प्रकार व्याख्या कर सकते है – Sanatan denotes ” that which is without beginning or end or everlasting dharma ” 

धर्म 

धर्म – धर्म का शाब्दिक अर्थ होता है – धारण करने योग्य अर्थात जिसे सबको धारण करना चाहिए । यही मानव धर्म हैं । धर्म शब्द का पश्चिमी भाषाओं में समतुल्य शब्द मिलना कठिन है। साधारण शब्दों में धर्म के बहुत अर्थ होते हैं जिनमे से कर्तव्य, अहिंसा, न्याय, सदाचरण और सद्गुण आदि। 

सनातन धर्म को अपने हिन्दू धर्म के वैकल्पिक नाम से भी जाना जाता हैं। सनातन धर्म आदि और अनन्त काल से चला आ रहा हैं। यह किसी एक ऋषि, मनीषी या दार्शनिक के विचारों की उपज नहीं है। न ही यह किसी विशेष समय की उपज हैं। यह तो अनादि काल से चला आ रहा हैं। 

सनातन धर्म का पहला आधार वेद है 

 

वेदों में लिखा है ईश्वर अजर अमर है। वेद ही बताते हैं सभी जीवों में ब्रह्म है। ईश्वर को पाने के लिए मोक्ष है। और मोक्ष ही सनातन धर्म का उद्देश्य है । सनातन धर्म को समझने के लिए वेदों का समझना अत्यावश्यक है। वेद का अर्थ भी ज्ञान होता हैं। वेद का अर्थ जानना, समझना होता है।

वेदों को बिना जानें सुने सुनाए आधार पर वेदमंत्रो को केवल कर्मकाण्ड समझने की भूल करते हैं। वेदों में – ज्ञान, विज्ञान, शिल्प, आयुर्वेद, धनुर्वेद, भूगोल, खगोल, ब्रह्माण्ड विज्ञान, अन्तरिक्ष विज्ञान, यांत्रिकी, भाषा शास्त्र, छंद शास्त्र, व्याकरण, दर्शन, अनुभूति, कर्मफल मीमांसा, मनोविज्ञान, वाणिज्य, राजनीति, शासन, प्रशासन, कला आदि ढेरों विषयों का ज्ञान है ।

सत्य ही सनातन है

सनातन – सत्य ही सनातन है – सत्य दो धातुओं से मिलकर बना है सत् और तत्। सत् का अर्थ यह और तत् का अर्थ वह। दोनों ही सत्य है। अहम ब्रह्मास्मी और तत्वमासी अर्थात् में ही ब्रह्म हूं और तुम भी ब्रह्म हों। यह सम्पूर्ण जगत ब्रह्मामय हैं। ब्रह्म पूर्ण है। यह जगत भी पूर्ण है। पूर्ण जगत की उत्पत्ति पूर्ण ब्रह्म से हुई है। पूर्ण ब्रह्म से पूर्ण जगत की उत्पत्ति होने पर भी ब्रह्म की पूर्णता में कोई न्यूनता नहीं आती वह शेष रूप में पूर्ण रहता हैं। यहीं सनातन सत्य है।

सनातन धर्म के मूल तत्त्व

सनातन धर्म के मूल तत्त्व – सत्य, अहिंसा, दया, क्षमा, दान, जप, तप, यम – नियम आदि है। जिनका शाश्वत महत्त्व है। विश्व में अन्य धर्मों के उदय के पूर्व वेदों में सनातन के सिद्धांतों को वर्णित कर दिया गया था अर्थात् जब अन्य धर्मों का उदय भी नहीं हुआ था उससे भी पूर्व अनादि काल से वेदों को लिखा गया था

सनातन धर्म को सरल शब्दों में – सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे संतु निरामया। सर्वे भद्राणि पश्यन्ति, मां कश्चिद् दुख भाग भवेत।।

सनातन धर्म के ध्येय वाक्य

धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, विश्व का कल्याण हो, प्राणियों में सदभाव हो । ये चार वाक्य सनातन धर्म के ध्येय वाक्य है। ब्रह्म एक है और सब उससे ही उत्पन्न है। जब कि विश्व के अन्य धर्मों में इससे बिल्कुल विपरीत है। अन्य धर्म मारने और काटने की बात करते हैं। सनातन धर्म की अवधारणा अति व्यापक है। जबकि हिन्दू धर्म सनातन संस्कृति पर आधारित हैं।

वेदों का सार

चारों वेदों में – ऋग्वेद को धर्म, सामवेद को काम, अथर्ववेद को अर्थ और यजुर्वेद को मोक्ष भी कहा जाता हैं। इन्ही के आधार पर धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र, कामशास्त्र और मोक्षशास्त्र की रचना हुई है।

वैदिक या हिन्दू धर्म को इसलिए सनातन धर्म कहा जाता है क्योंकि यही एक मात्र धर्म हैं जो ईश्वर आत्मा और मोक्ष को तत्त्व और ध्यान से जानने का मार्ग बताता है। दुनिया में सनातन धर्म में ही मोक्ष की अवधारणा है। मोक्ष से आत्मज्ञान या ईश्वर का साक्षात्कार होता है और यही सनातन धर्म का मूल सिद्धान्त हैं।

अतः शाश्वत ही सनातन है। सत्य ही सनातन है। और सत्य ही शिव हैं और शिव ही सुन्दर है

निष्कर्ष (Conclusion)

सनातन धर्म शाश्वत या सदा बने रहने वाला अर्थात् जिसका न आदि और न अन्त है। और जिसे सबको धारण करना चाहिए। सनातन धर्म का मूल आधार वेद है। सत्य ही सनातन है। सनातन धर्म को सरल शब्दों में – सर्वे भवन्तु ……. भाग भवेत् कहा जा सकता हैं। सत्य, अहिंसा, दया, क्षमा, दान, जप, तप, यम नियम आदि है। जिनका शाश्वत महत्त्व है। धर्म की जय हो अधर्म का नाश हो, विश्व का कल्याण हो और प्राणियों में सदभाव हो । ये चार वाक्य सनातन के ध्येय वाक्य है। सभी जीवों में ब्रह्म है, ब्रह्म ही ईश्वर हैं। ईश्वर को पाने के लिए मोक्ष है और मोक्ष ही सनातन का उद्देश्य है। यहीं सनातन का मूल सिद्धान्त हैं ।

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