नवरात्रि शक्ति की उपासना का पर्व है। प्रकृति की जितनी भी शक्तियां हैं, वह सब मातृशक्ति की ही विविध अभिव्यक्तियां है। दुर्गा सप्तशती के अनुसार सृष्टि के समस्त प्राणियों में चेतना, बुद्धि, स्मृति, धृति, शक्ति, श्रृद्धा, कान्ति, तुष्टि, दया, और लक्ष्मी आदि रूपो में यहीं आदिशक्ति स्थित रहती है। यहीं प्रत्येक प्राणी के भीतर मातृशक्ति के रुप में प्रकाशित होती हैं जो सत, रज एवम् तमो गुणों के आधार पर यह क्रमशः महासरस्वती, महालक्ष्मी एवम् महाकाली के रुप में प्रकाशित होती हैं। इसी मातृशक्ति को जीवन में प्रकाशित करने के लिए नवरात्रि शक्ति की उपासना का पर्व मनाया जाता हैं।
नवरात्र शब्द दो शब्दो नव एवं रात्र से मिलकर बना है। जिसका अर्थ नौ दिव्य अहोरात्र से है। हमारे शास्त्रों के अनुसार नवरात्रि का पर्व वर्ष में चार बार आता है। ये चार नवरात्रि — चैत्र नवरात्र, आषाढीय नवरात्र, शारदीय नवरात्र एवं माघिय नवरात्र। जिसमें से दो नवरात्र चैत्र नवरात्र एवम् शारदीय नवरात्र जनमानस में विशेष रूप से प्रसिद्ध है। शेष दो नवरात्रि आषाढ़ी व माघिय को गुप्त नवरात्र कहा जाता हैं।
कल्कि पुराण के अनुसार गुप्त नवरात्र साधकों के लिए उत्तम मानी जाती है। चैत्र नवरात्र जनमानस के लिए और शारदीय नवरात्र राजवंशों (क्षत्रियों) के लिए उत्तम मानी गई है। लेकिन प्रत्येक मानव के लिए शक्ति और अध्यात्मिक लाभ के लिए नवरात्रि (Navaratri) शक्ति की उपासना का पर्व मनाना चाहिए।
ऋग्वेद के अनुसार
आदिशक्ति को मातृशक्ति के रुप में पूजने की परम्परा हमारी सनातन संस्कृति की ऐसी विशेषता है। जिसकी मिसाल विश्व के अन्य धर्मों में खोज पाना दुर्लभ है। हमारी गौरवशाली संस्कृति के आदिग्रन्थ “ऋग्वेद” के दशम मण्डल में एक पूरा सूक्त ही शक्ति उपासना पर केन्द्रित है। इस देवी सूक्त में मां आदिशक्ति को मूल प्रकृति के रुप में परिभाषित किया है।
इसके अनुसार ” मां आदि शक्ति ममत्व की पराकाष्ठा है। और तेज, दीप्ति, दूती व कांति से समन्वित उनकी जीवन प्रदायनी ऊर्जा ही सृष्टि के हर जड़ – चेतन मे संचरित होती है। ऋग्वेद के इस देवी सूक्त में मां आदिशक्ति स्वयं कहती हैं, “अहम राष्ट्रे संगमती बसना अहम रुद्राय धनुरातिमी …. अर्थात् मैं ही राष्ट्र को बांधने और ऐश्वर्य देने वाली शक्ति हूं। मै ही रुद्र के धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाती हूं। धरती और आकाश में व्याप्त हो मै ही मानव त्राण के लिए महासंग्राम करती हूं। “
वैदिक ऋषियों के अनुसार मां आदिशक्ति वस्तुतः स्त्री शक्ति की अपरिमितता की द्योतक हैं। उसके बिना समस्त देवशक्तिया अपूर्ण है। ऋग्वेद के देवी सूक्त के अतिरिक्त ऊषा सूक्त और सामवेद के रात्रि सूक्त में भी मां आदिशक्ति साधना की महिमा का वर्णन मिलता हैं।
त्रेता और द्वापर युग में
त्रेता युग में हुए राम – रावण युद्ध से पहले भगवान श्री राम और द्वापर युग में हुए महाभारत के युद्ध से पहले भगवान श्री कृष्ण ने भी लक्ष्य की पूर्णता के लिए मां शक्ति की उपासना कर उनका आशीर्वाद मांगा था। कम्ब रामायण में उल्लेख मिलता है युद्ध से पहले रावण ने भी मां शक्ति की आराधना की थी। किन्तु मां भगवती ने उसे “विजय श्री” का नहीं अपितु “कल्याणमस्तु”का आशीर्वाद दिया था। क्योंकि सर्वज्ञ मां भगवती जानती थी कि रावण की कामना एवम् अहंकार के पराभव में ही उसका कल्याण निहित था।
मार्कण्डेय पुराण के अनुसार
हमारे वैदिक ऋषि मनीषियों ने विभिन्न शुभ संदर्भों से जुड़े नवरात्र के दिव्य साधना काल में शक्ति संचय का अत्यन्त फलदायी अवसर माना है। ऋतु परिवर्तन की इस संधि वेला में की गई छोटी सी संकल्पित साधना से भी चमत्कारी परिणाम अर्जित किए जा सकते है।
मार्कण्डेय पुराण में देवी महात्म्य की विशद विवेचना दुर्गा सप्तशती के नाम से की गई है। जिसमें सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी ने मार्कण्डेय ऋषि को देवी के नौ स्वरूपों – शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री की महिमा बताते हुए कहते हैं कि यह अनन्त विश्व ब्रह्माण्ड मां आदि शक्ति की लीला का ही विस्तार है।
मां भगवती विविध अवसरों पर विविध प्रयोजनों के लिए अलग अलग नाम, रुप एवं शक्ति धारण करके प्रकट होती है। प्रकृति की जितनी भी शक्तियां हैं, वह सब इन्ही मातृशक्ति की ही विविध अभिव्यक्तियां है।
दुर्गा सप्तशती के अनुसार
हमें दैहिक, भौतिक एवं आध्यात्मिक उन्नति के लिए शक्ति की उपासना करनी चाहिए। शक्ति से विहीन होकर “शिव” शव के समान हो जाते है। शक्ति के सानिध्य से ही शिव का शिवत्व जागृत होता है। अर्थात् महाकाल की संजीवनी महाकाली है। शक्ति तत्त्व की व्याख्या करते हुए “दुर्गा सप्तशती” के अनुसार सृष्टि के समस्त प्राणियों में विभिन्न रूपों में यहीं आदिशक्ति स्थित रहती है।
मां भगवती प्रत्येक प्राणी के भीतर मातृ शक्ति के रुप में प्रकाशित हैं जो सत, रज एवम् तम गुणों के आधार पर यह क्रमशः महासरस्वती महालक्ष्मी एवम् महाकाली के रुप में प्रकाशित होती हैं।
मार्कण्डेय ऋषि द्वारा रचित श्री मद्देवीभागवत में शक्ति की व्यापकता का उल्लेख तीन रूपों में किया गया है। महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती। महाकाली आसुरी शक्तियों की संहारक है। वह अपने खड्ग से अज्ञान और अहंकार का नाश करती है। महासरस्वती सद्ज्ञान और विवेक की देवी है। वह विद्या, साहित्य और संगीत की अधिष्ठात्री है। वहीं महालक्ष्मी समस्त सांसारिक ऐश्वर्य की प्रदाता है।
मां आदिशक्ति (भगवती) की उपासना
प्रत्येक सनातनी को विशेषकर क्षत्रियों को नवरात्रि पर शक्ति की उपासना अवश्य करनी चाहिए। यह साधनाकाल साधक के आध्यात्मिक विकास में तो सहायक होता ही है, उसके व्यक्तित्व को भी निखारता है। दरअसल आज के समय की सभी समस्याओं के के दो मूल कारण है – बाहर की दुनिया में फैली विषाक्तता और भीतर की दुनिया में पसरती असुरता। इससे मानव का चिंतन, चरित्र और व्यवहार बुरी तरह प्रदूषित हो रहा हैं।
आसुरी दुष्प्रवृतियो पर अंकुश के लिए सबसे आवश्यक है जनमानस का परिष्कार और यह परिष्कार सिर्फ शक्ति की साधना से ही हो सकता हैं। साधना विचार की, संयम की, क्रोध पर नियंत्रण की और चित्त की एकाग्रता की। यह साधना सीख गए तो अपने जीवन की सभी समस्याओं का हल हम स्वयं ही पा लेंगे।
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