Amavasya : अमावस्या भी खास है सनातन में साधना के लिए

अमावस्या : संस्कृत में, “अमा” का अर्थ है “एक साथ” और “वास्य” का अर्थ है “निवास करना”। इसका अर्थ “न” + “मा” + “अस्य” भी है जिसका अर्थ है “न” = “नहीं”, “मा” = चंद्रमा, “अस्य” = “वहाँ” जिसका अर्थ है कि चंद्रमा दिखाई नहीं देना ।

अमावस्या के दिन चंद्रमा को नहीं देखा जा सकता है। चंद्रमा 28 दिनों में पृथ्वी का एक चक्कर पूर्ण करता है।15 दिनों के चंद्रमा पृथ्वी की दूसरी ओर होता है और भारतवर्ष से उसको नहीं देखा जा सकता है। वही जिस दिन, जब चंद्रमा पुर्ण रूप से भारतवर्ष नहीं देखा जा सकता है उसे अमावस्या का दिन कहा जाता है।

अमावस्या का सनातन धर्म में महत्त्व

अमावस्या को हिन्दू शास्त्रों में काफी महत्वपुर्ण स्थान प्राप्त है और इसके अनुसार अमावस्या को पितृ अर्थात दिवंगत पूर्वजों का दिन भी माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार अमावस्या के दिन स्नान कर प्रभुः का ध्यान करना चाहिये, गरीब, बेसहारा और जरूतमंद बुज़ुर्गों को भोजन करना चाहिये। अमावस्या को पितरों का दिन होता है, इस दिन जरुरतमन्द को भोजन कराने एवं तर्पण से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है। और पितृ तृप्त होते है।

अमावस्या तिथि के त्यौहार

अमावस्या तिथियों में मुख्य रूप से ये व्रत, पर्व त्यौहार मनाएं जाते है। सनातन धर्म में अमावस्या तिथि का बहुत बड़ा महत्व माना जाता है। अमावस्या तिथि को लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए भी विशेष पूजा एवं दिवंगत पितृ के आत्म शांति के लिए श्राद्ध आदि करने का विधान भी है। जानें अमावस्या तिथि पर कौन-कौन से पर्व मनाएं जाते है –

1. चैत्र अमावस्या – चैत्र मास की अमावस्या के दिन विधि-विधान से व्रत रखकर, दक्षिणाभिमुख होकर अपने दिवंगत पित्तरों के के निमित्त श्राद्ध कर्म करने से पित्तरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

2. वैशाख अमावस्या – धार्मिक मान्यता के अनुसार, वैशाख मास की अमावस्या तिथि के दिन ही त्रेतायुग का प्रारंभ हुआ था।

3. ज्येष्ठ अमावस्या – ज्येष्ठ माह अमावस्या तिथि को शनि जयंती का पर्व मनाया जाता है। धर्म शास्त्रों के अनुसार ज्येष्ठ अमावस्या के दिन ही न्याय के देवता शनि देव का जन्म हुआ था।

4. आषाढ़ अमावस्या – आषाढ़ मास की अमावस्या को आषाढ़ी अमावस्या कहा जाता है। वर्षा ऋतु का आगमन भी आषाढ़ अमावस्या से ही होता है। इस अमावस्या तिथि पितृकर्म अमावस्या भी कहा जाता है।

5. श्रावण अमावस्या – श्रावण मास की अमावस्या तिथि को हरियाली अमावस्या भी कहा जाता है। इस अमावस्या के ठीक तीन दिन बाद हरियाली तीज का पर्व मनाया जाता है।

6. भाद्रपद अमावस्या – भाद्रपद मास की अमावस्या के दिन धार्मिक कार्यों के लिए कुश (घास) को एकत्रित करके रखा जाता है। मान्यता है कि इस दिन कुशा को घर में स्थापित करने से पुण्य की प्राप्ति होती है।

7. अश्विन अमावस्या – अश्विन अमावस्या को सर्व पितृ मोक्ष अमावस्या, एवं पितृ विसर्जनी अमावस्या कहा जाता है। इसी दिन पंद्रह दिनों तक चलने वाला श्राद्ध पक्ष का समापन होता है। इस अमावस्या को ज्ञात, अज्ञात पितरों के निमित्त श्राद्ध कर्म किया जाता है।

8. कार्तिक अमावस्या – सनातन धर्म में कार्तिक मास की अमावस्या अति महत्वपूर्ण होती है। इसी अमावस्या तिथि को सबसे बड़ा महापर्व दीपावली का त्यौहार मनाया जाता है। इस दिन धन की देवी माता महालक्ष्मी माता एवं ऋद्धि-सिद्धि के बुद्धि के देवता भगवान श्रीगणेश जी की पूजा भी जाती है। लक्ष्मी पूजा एवं भारत में दिवाली का उत्सव सबसे महत्वपूर्ण दिन है।

9. मार्गशीर्ष अमावस्या – मार्गशीर्ष अमावस्या को अगहन अमावस्या कहते हैं। इस दिन पित्तरों की शांति लिए दान-पुण्य एवं तर्पण किया जाता है।

10. पौष अमावस्या – कालसर्प दोष से मुक्ति पाने के लिए पौष अमावस्या तिथि को उपवास रखने का विधान है। इस दिन सूर्यदेव की विशेष पूजा भी जाती है।

11. माघ अमावस्या – माघ अमावस्या को मौनी अमावस्या भी कहा जाता है। इस दिन पवित्र नदी, जलाशय अथवा कुंड में स्नान-ध्यान करके व्रत उपवास करने वाले को दिव्य पद की प्राप्ति होती है।

12. फाल्गुन अमावस्या – सुख-संपत्ति और सौभाग्य की प्राप्ति के लिए फाल्गुन अमावस्या अति शुभ फलदायी मानी जाती है।

अमावस्या के दिन क्या नहीं करना चाहिए ?

अमावस्या के दिन बाल और नाखून काटने से बचना चाहिए। अमावस्या के दिन दिन शुभ कार्य जैसे- शादी, गृह प्रवेश और मुंडन आदि कार्य नहीं करने चाहिए। बुरे व्यसनों से दूर रहना चाहिए किसी को गलत शब्द न बोले और क्रोध करने से बचें। ऐसा करने से पितृ दोष लगता है।

अमावस्या पर कभी पीपल, तुलसी, वट वृक्ष के पत्ते न तोड़े. तुलसी में लक्ष्मी का वास होता है, इस दिन तुलसी दल तोड़ने से धन हानि होती है। अमावस्या के दिन भूलकर भी पशु-पक्षी को तंग न करें. न ही किसी बुजुर्ग, जरुरतमंद, का अपमान न करें. ऐसा करना पर घर की सुख-शांति छिन जाती है. परिवार में क्लेश होते हैं।

अमावस्या की रात, जब चंद्रमा आकाश में दिखाई नहीं देता, भारतीय संस्कृति और आध्यात्म में विशेष महत्व रखती है। इसे रहस्यमय और गूढ़ता से भरी रात माना जाता है। अमावस्या का समय ध्यान, साधना और तंत्र साधना के लिए विशेष रूप से उपयुक्त माना जाता है।

अमावस्या का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

  1. पितृ तर्पण और श्राद्ध कर्म: अमावस्या का दिन पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध कर्म और तर्पण करने के लिए विशेष माना जाता है। इस दिन किए गए कर्म पितरों को मोक्ष प्रदान करने में सहायक माने जाते हैं।
  2. महाकाल पूजा: बहुत से साधक इस दिन भगवान शिव की विशेष पूजा करते हैं, क्योंकि इसे तंत्र साधना और देवी-देवताओं की विशेष कृपा प्राप्त करने का समय माना जाता है।
  3. तंत्र साधना: तंत्र साधक अमावस्या की रात को विशेष ध्यान और साधना करते हैं। इस रात का वातावरण अधिक शांत और उर्जावान होता है, जिससे साधकों को अपने आध्यात्मिक लक्ष्यों की ओर बढ़ने में मदद मिलती है।
  4. नकारात्मक शक्तियों का नियंत्रण: इस दिन को नकारात्मक ऊर्जा और बुरी शक्तियों का समय माना जाता है। इसलिए, कई लोग इस दिन विशेष पूजा और हवन करते हैं ताकि नकारात्मक शक्तियों से बचा जा सके।

आध्यात्मिकता और रहस्य

अमावस्या का दिन हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। इसे “अमावस” भी कहा जाता है और इस दिन को पितरों को समर्पित माना जाता है। इस दिन विशेष पूजा और अनुष्ठान करने से पितरों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की जाती है और उनके आशीर्वाद की प्राप्ति होती है। अमावस्या का दिन ध्यान, साधना और पितरों की आत्मा की शांति के लिए समर्पित होता है। इस दिन की गई पूजा और अनुष्ठान से व्यक्ति को पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।

अमावस्या की रात

अमावस्या की रात को लोग ध्यान, आत्मनिरीक्षण और आत्मशुद्धि के लिए उपयुक्त मानते हैं। इस समय के दौरान ध्यान करने से मन की शांति प्राप्त होती है और आत्मा की गहराईयों में जाने का अवसर मिलता है। जहां अमावस्या का अंधेरा आंतरिक प्रकाश को खोजने की प्रेरणा देता है।

अमावस्या के साथ कई लोककथाएँ और मान्यताएँ भी जुड़ी हुई हैं। इसे भूत-प्रेत और अघोरी साधकों का समय माना जाता है।अमावस्या की रात को जो रहस्य और आध्यात्मिकता से भरी मान्यता है, वह हमारे भारतीय समाज की गहरी धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा है। यह दिन न केवल पितृ तर्पण और पूजा का समय है, बल्कि आत्मा की गहराईयों में जाने और आत्मनिरीक्षण करने का एक अवसर भी है।

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