माँ बगुलामुखी: पिताम्बरा के नाम विख्यात बगुलामुखी की साधना प्रायः शत्रुनाश और वाणी की सिद्धि के लिये की जाती है। माता बगलामुखी दस महाविद्याओं में आठवीं महाविद्या हैं। इन्हें माता पीताम्बरा भी कहते हैं। यह भगवती पार्वती का उग्र स्वरूप है। ये भोग और मोक्ष दोनों प्रदान करने वाली देवी है। शत्रुनाश, वाकसिद्धि, वाद विवाद में विजय के लिए इनकी उपासना की जाती है। शत्रुनाश के लिए ब्रह्मास्त्र है बगुलामुखी की साधना।
माँ बगुलामुखी
माँ बगुलामुखी की शत्रुनाश, वाकसिद्धि, वाद विवाद में विजय के लिए इनकी उपासना की जाती है। इनकी उपासना से शत्रुओं का नाश होता है। तथा साधक का जीवन निष्कंटक हो जाता है। माँ बगलामुखी को ब्रह्मास्त्र के नाम से भी जाना जाता है। व्यष्ठि रूप में शत्रुओ को नष्ट करने की इच्छा रखने वाली तथा समिष्टि रूप में परमात्मा की संहार शक्ति ही बगला है।
दसमहाविधाओ मे से आठवी महाविधा है माँ बगुलामुखी। इनकी साधना भक्त शत्रु नाश, वाकसिद्धि और वाद विवाद मे विजय के लिए करते है। इनमे सारे ब्राह्मण की शक्ति का समावेश है, इनकी उपासना से भक्त के जीवन की हर बाधा दूर होती है और शत्रुओ के नाश के साथ साथ बुरी शक्तियों का भी नाश करती है। देवी को बगलामुखी, पीताम्बरा, वगलामुखी, बगला, वल्गामुखी, ब्रह्मास्त्र विद्या आदि नामों से भी जाना जाता है।
माँ बगुलामुखी का स्वरूप
माँ बगुलामुखी का स्वरूप नवयौवना हैं और पीले रंग की साङी धारण करती हैं। सोने के सिंहासन पर विराजती हैं । तीन नेत्र और चार हाथ हैं। सिर पर सोने का मुकुट है। स्वर्ण आभूषणों से अलंकृत हैं । शरीर पतला और सुंदर है । रंग गोरा और स्वर्ण जैसी कांति है। मुख मंडल अत्यंत सुंदर है जिस पर मुस्कान छाई रहती है जो मन को मोह लेता है। सारे ब्रह्माण्ड की शक्ति मिल कर भी इनका मुकाबला नहीं कर सकती। दस महाविद्याओं में इनका स्थान आठवाँ है। इनके दाहिने हाथ में एक गदा जिसके साथ वह एक राक्षस धड़क रहा है, जबकि उसके बाएं हाथ के साथ अपनी जीभ बाहर खींच रखती है।
माँ बगुलामुखी की साधना
माँ बगुलामुखी की साधना से पहले हरिद्रा गणपती की आराधना अवश्य करनी चाहिये अन्यथा यह साधना पूर्ण रूप से फलीभूत नहीं हो पाती है। इनकी उपासना में हल्दी की माला, पीले फूल और पीले वस्त्रो का विधान है।किसी छोटे कार्य के लिए दस हजार तथा असाध्य से लगाने वाले कार्य के लिए एक लाख मंत्रों का जाप करना चाहिए। बगलामुखी मंत्र के जाप से पूर्व बगलामुखी कवच का पाठ अवश्य करना चाहिए।
माँ बगुलामुखी के दुर्लभ मंत्र
माँ बगलामुखी विशेष मंत्र –
‘ॐ ह्रीं बगलामुखी सर्व दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलयं बुद्धिं विनाशय ह्रीं ॐ स्वाहा।’
इस मंत्र से सभी काम्य प्रयोग संपन्न किए जाते हैं। हल्दी की माला से इस मंत्र का जप करें। मधु, शर्करा युक्त तिलों से होम करने पर मनुष्य वश में होते है।तेल युक्त नीम के पत्तों से होम करने पर विद्वान बनते हैं। हरिताल, नमक तथा हल्दी से होम करने पर शत्रुओं का स्तम्भन होता है। मधु, घृत तथा शर्करा युक्त लवण से होम करने पर आकर्षण होता है।
शत्रुनाशक मंत्र –
‘ॐ बगलामुखी देव्यै ह्लीं ह्रीं क्लीं शत्रु नाशं कुरु’
रुद्राक्ष की माला से इस मंत्र का जप करें। नारियल काले वस्त्र में लपेट कर बगलामुखी देवी को अर्पित करें मूर्ति या चित्र के सामने गुगुल की धूप जलाएं।मंत्र जाप के समय पश्चिम में मुख रखें। रुद्राक्ष की माला से 5 माला का मंत्र जप करें।
बगलामुखी सुरक्षा कवच मंत्र –
‘ॐ हां हां हां ह्लीं बज्र कवचाय हुम’ रुद्राक्ष की माला से इस मंत्र का जप करें।
अकाल मृत्यु से बचने का मां बगलामुखी मंत्र –
‘ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं ब्रह्मविद्या स्वरूपिणी स्वाहा:’ रुद्राक्ष की माला से इस मंत्र का जप करें।
सफलता का बगलामुखी मंत्र :-
‘ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं बगामुखी देव्यै ह्लीं साफल्यं देहि देहि स्वाहा:’ रुद्राक्ष की माला से इस मंत्र का जप करें.
नजर नाशक मंत्र :-
‘ॐ ह्लीं श्रीं ह्लीं पीताम्बरे तंत्र बाधाम नाशय नाशय`
रुद्राक्ष की माला से इस मंत्र का जप करें। आटे के तीन दिये बनाएं व देसी घी डाल कर जलाएं। कपूर से देवी की आरती करें। रुद्राक्ष की माला से 7 माला का मंत्र जप करें। मंत्र जाप के समय दक्षिण की तरफ मुख रखें।
बच्चों की रक्षा का मंत्र:–
‘ॐ हं ह्लीं बगलामुखी देव्यै कुमारं रक्ष रक्ष’ रुद्राक्ष की माला से इस मंत्र का जप करें।
माँ बगलामुखी के प्रदुभार्व की कथा
सतयुग में महाविनाश उत्पन्न करने वाला ब्रह्मांडीय तूफान उत्पन्न हुआ, जिससे संपूर्ण विश्व नष्ट होने लगा इससे चारों ओर हाहाकार मच गया। संसार की रक्षा करना असंभव हो गया। जिससे भगवान विष्णु चिंतित हो गए।इस समस्या का कोई हल पाने के लिए वह भगवान शिव को स्मरण करने लगे, तब भगवान शिव ने कहा- शक्ति रूप के अलावा अन्य कोई इस प्रलय को रोक नहीं सकता अत: आप उनकी शरण में जाएं।
तब भगवान विष्णु ने हरिद्रा सरोवर के पास पहुंच कर कठोर तप किया। भगवान विष्णु के तप से देवी शक्ति प्रकट हुईं। उनकी साधना से महात्रिपुरसुंदरी प्रसन्न हुईं। सौराष्ट्र क्षेत्र की हरिद्रा झील में जलक्रीड़ा करती महापीतांबरा स्वरूप देवी के हृदय से दिव्य तेज उत्पन्न हुआ। इस तेज से ब्रह्मांडीय तूफान थम गया।
मंगलयुक्त चतुर्दशी की अर्धरात्रि में देवी शक्ति का देवी बगलामुखी के रूप में प्रादुर्भाव हुआ था। त्रैलोक्य स्तम्भिनी महाविद्या भगवती बगलामुखी ने प्रसन्न होकर भगवान विष्णु जी को इच्छित वर दिया और तब सृष्टि का विनाश रुक सका। देवी बगलामुखी को वीर रति भी कहा जाता है क्योंकि देवी स्वयं ब्रह्मास्त्र रूपिणी हैं। इनके शिव को महारुद्र कहा जाता है। इसीलिए देवी सिद्ध विद्या हैं। तांत्रिक इन्हें स्तंभन की देवी मानते हैं। गृहस्थों के लिए देवी समस्त प्रकार के संशयों का शमन करने वाली हैं। सम्पूर्ण सृष्टि में जो भी तरंग है वो इन्हीं की वजह से है।
माँ बगलामुखी के सिद्धपीठ
प्राचीन तंत्र शास्त्र दस महाविद्याओं का वर्णन है। उनमें से प्रमुख हैं माँ बगलामुखी। माँ भगवती बगलामुखी का समस्त देवियों में सबसे विशिष्ट स्थान है। पूरी दुनिया में इनके सिर्फ तीन ही महत्वपूर्ण प्राचीन मंदिर हैं, जिन्हें सिद्धपीठ कहा जाता है। हमारे देश में माँ बगलामुखी के तीन ही प्रमुख ऐतिहासिक मंदिर माने जाते हैं जो क्रमशः दतिया (मध्यप्रदेश), कांगड़ा (हिमाचल) तथा नलखेड़ा (मध्यप्रदेश) में हैं। जिन्हें सिद्धपीठ कहा जाता है।
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