हलाल प्रॉडक्ट : अब तो दवाईयों से लेकर सौंदर्य उत्पाद जैसे शैम्पू, और लिपस्टिक,अस्पतालों से लेकर फाइव स्टार होटल तक , रियल एस्टेट से लेकर हलाल टूरिज्म और तो और हलाल डेटिंग, यहाँ तक की शाकाहारी प्रॉडक्ट बेसन, आटा, मैदा जैसे शाकाहारी उत्पादों तक के हलाल सर्टिफिकेशन पर पहुँच गई है। हद तो तब हो गई जब आयुर्वेदिक औषधियों तक के लिए भी हलाल सर्टिफिकेट !
हलाल सर्टिफिकेट मांस तक सीमित ना होकर रेस्ट्रोरेंट या फाइव स्टार होटलो में परोसी जाने वाली हर चीज जैसे तेल, मसाले चावल, दाल सब कुछ हलाल सर्टिफिकेट की होनी चाहिए। और जब यह हलाल सर्टिफाइड शाकाहार या मांसाहार रेल या विमानों में परोसा जाता है तो हिन्दुओं , सिखों और गैर मुस्लिम को भी परोसा जाता है।
हलाल प्रमाणित उत्पाद का मतलब है कि उत्पाद इस्लामी कानून के अनुसार स्वीकार्य या स्वीकार्य है। इस प्रमाणन को प्राप्त करने के लिए उत्पादों के लिए, उन्हें एक स्वीकार्य स्रोत से होना चाहिए जैसे कि गाय या चिकन और इन कानूनों के अनुसार वध।
ये गैर मुस्लिम जिनकी धार्मिक मान्यताएं हलाल के विपरीत झटका मांस की इजाजत देती हैं वो भी इसी का सेवन करने के लिए विवश हो जाते हैं। लेकिन इससे भी अधिक महत्वपूर्ण बात जो समझने वाली है वो यह कि इस हलाल सर्टिफिकेट को लेने के लिए भारी भरकम रकम देनी पड़ती है जो गैर सरकारी मुस्लिम संगठनों की झोली में जाती है
क्या है हलाल प्रॉडक्ट
हलाल : हलाल एक अरबी शब्द है जिसका अर्थ है ‘अनुमति प्राप्त‘ या ‘वैध’। कुरान में हलाल शब्द का अर्थ है वह जिसकी अनुमति है और जिसकी अनुमति अल्लाह ने दी है। अर्थात जिसका मतलब है जायज। जिसकी इजाजत इस्लाम में हो, जो सही या वैध हो, वो हलाल है।
अब तो हलाल केवल खाने के मामले में लागू नहीं होता, बल्कि दवाओं से लेकर कपड़ों पर भी और लाइफस्टाइल पर भी लागू होता है जैसे शराब-सिगरेट न पीना और किसी भी तरह से इस्लामिक परंपराओं को चोट न पहुंचाना।
हमारे देश में भी भारतीय रेल और विमानन सेवाओँ जैसे प्रतिष्ठानों से लेकर फाइव स्टार होटल तक हलाल सर्टिफिकेट हासिल करते हैं जो यह सुनिश्चित करता है कि जो मांस परोसा जा रहा है वो हलाल है। मैकडोनाल्ड डोमिनोज़, जोमाटो जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियां तक इसी सर्टिफिकेट के साथ काम करती हैं।
अभी तक देश से निर्यात होने वाले डिब्बाबंद मांस के लिए वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के तहत आने वाले खाद्य उत्पादन निर्यात विकास प्राधिकरण को हलाल प्रमाण पत्र देना पड़ता था क्योंकि दुनिया के अधिकांश मुस्लिम देश हलाल मांसाहार ही आयात करते हैं। लेकिन यह बात जितनी साधारण दिखाई दे रही है उससे कहीं अधिक पेचीदा है। क्योंकि तथ्य यह बताते हैं कि जो बात मजहबी मान्यताओं के अनुसार पशु वध के तरीके (हलाल) से शुरू हुई थी।
हलाल प्रॉडक्ट : लगभग 2.5 ट्रिलियन $ एकोनॉमी
जो भी कंपनी अपना सामान मुस्लिम देशों को निर्यात करती हैं उन्हें इन देशों को यह सर्टिफिकेट दिखाना आवश्यक होता है। अगर हलाल फूड मार्किट के आंकड़ों की बात करें तो यह वैश्विक स्तर पर 19-20 % की है जिसकी कीमत लगभग 2.5 ट्रिलियन $ की बैठती है। आज मुस्लिम देशों में हलाल सर्टिफिकेट उनकी जीवनशैली से जुड़ गया है। वे उस उत्पाद को नहीं खरीदते जिस पर हलाल सर्टिफिकेट नहीं हो। हलाल सर्टिफिकेट वाले अस्पताल में इलाज, हलाल सर्टिफिकेट वाले कॉम्प्लेक्स में फ्लैट औऱ हलाल टूरिज्म पैकेज देने वाली एजेंसी से यात्रा। यहाँ तक कि हलाल की मिंगल जैसी डेटिंग वेबसाइट।
अब प्रश्न उठता है कि उपर्युक्त तथ्यों के क्या मायने हैं। क्योंकि जब हलाल माँस की बात आती है तो स्वाभाविक रूप से उसे काटने की प्रक्रिया के चलते वो एक मुस्लिम के द्वारा ही कटा हुआ होना चाहिए। जाहिर है इसके परिणामस्वरूप जो हिन्दू इस कारोबार से जुड़े थे वो इस कारोबार से ही बाहर हो गए।
माँस से आगे बढ़ कर चावल, आटा, दालों, कॉस्मेटिक जैसी वस्तुओं के हलाल सर्टिफिकेशन के कारण अब यह रकम धीरे-धीरे एक ऐसी समानांतर अर्थव्यवस्था का रूप लेती जा रही है जिस पर किसी भी देश की सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है और इसलिए यह एक वैश्विक चिंता का विषय भी बनता जा रहा है।
ऑस्ट्रेलियाई नेता जॉर्ज क्रिस्टेनसेन ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि हलाल अर्थव्यवस्था का पैसा आतंकवाद के काम में लिया जा सकता है।
वहीं अंतरराष्ट्रीय लेखक नसीम निकोलस ने अपनी पुस्तक “स्किन इन द गेम” में इसी विषय पर “द मोस्ट इंटॉलरेंट विंस” (जो असहिष्णु होता है वो जीतता है) नाम का लेख लिखा है। इसमें उन्होंने यह बताया है कि अमेरिका जैसे देश में मुस्लिम और यहूदियों की अल्पसंख्यक आबादी कैसे पूरे अमेरिका में हलाल मांसाहार की उपलब्धता मुमकिन करा देते हैं।
अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और यूरोप के देश इस बात को समझ चुके हैं कि मजहबी मान्यताओं के नाम पर हलाल सर्टिफिकेट के जरिए एक आर्थिक युद्ध की आधारशिला रखी जा रही है जिसे हलालोनोमिक्स भी कहा जा रहा है।
खास बात यह है की ऑस्ट्रेलिया की दो बड़ी मल्टी नेशनल कंपनी केलॉग्स और सैनिटेरियम ने अपने उत्पादों के लिए हलाल सर्टिफिकेट लेने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि उनके उत्पाद शुद्ध शाकाहारी होते हैं इसलिए उन्हें हलाल सर्टिफिकेशन की कोई आवश्यकता नहीं है।
आज तक न्यूज के अनुसार – हलाल डेटिंग: हलाल फूड की बात तो जानी-पहचानी है, अब कई और टर्म्स भी चल निकले हैं. इसमें हलाल डेटिंग नया टर्म है। ये शादी से पहले की वो मुलाकात है, जो मुस्लिम युवक-युवतियां कर सकते हैं. इसके कई नियम होते हैं ताकि इस्लामिक सिद्धांतों का पालन हो सके। कई डेटिंग वेबसाइट्स भी हैं, जो हलाल मुलाकात का प्रॉमिस करती हैं।
यूपी में हलाल प्रोडक्ट बैन किए गए – प्रेस रिव्यू
उत्तर प्रदेश सरकार नेहाल ही में प्रदेश के भीतर हलाल सर्टिफ़िकेशन वाले खाद्य उत्पादों के उत्पादन, भंडारण, वितरण और उसकी बिक्री पर रोक लगा दी है।
अख़बार टाइम्स ऑफ़ इंडिया में छपी एक ख़बर के अनुसार – प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाल में हलाल सर्टिफ़िकेशन के ग़लत इस्तेमाल को लेकर चिंता जताई थी जिसके बाद ये फ़ैसला लिया गया है।
अख़बार लिखता है कि एक सरकारी प्रवक्ता ने कहा कि खाद्य सुरक्षा और मानक क़ानून 2006 में हलाल सर्टिफ़िकेशन का ज़िक्र नहीं है इसलिए ये ग़ैर-क़ानूनी है।
सरकार का ये फ़ैसला शुक्रवार को पुलिस में दर्ज की गई एक शिकायत के बाद आया है जिसमें आठ एजेंसियों के ख़िलाफ़ कथित तौर पर “फ़र्ज़ी” और “ग़ैर-क़ानूनी” तरीक़े से हलाल सर्टिफ़िकेट बांटने का आरोप लगाया गया है. शिकायत के अनुसार इससे सामाजिक वैमनस्य बढ़ने और आम लोगों के भरोसे को तोड़ने का ख़तरा है।
यूपी पुलिस के एक अधिकारी के हवाले से अख़बार लिखता है कि शैलेन्द्र कुमार सुमन नाम के एक व्यवसायी की दी गई ये शिकायत इस तरह के हलाल सर्टिफ़िकेट के ख़िलाफ़ पहली क़ानूनी कार्रवाई है। हालांकि उन मामलों में छूट दी गई है जहां निर्यात होने वाले उत्पादों के लिए सर्टिफ़िकेशन की ज़रूरत होती है।
हलाल प्रोडक्ट कैसे पहचाने ?
हलाल प्रमाणित उत्पाद का मतलब है कि उत्पाद इस्लामी कानून के अनुसार स्वीकार्य या स्वीकार्य है। इस को जमीयत उलेमा ई हिन्द हलाल ट्रस्ट , हलाल इंडियां प्रा. लिमिटेड , हलाल सर्टिफ़िकेशन ऑफ इंडिया आदि प्राइवेट संस्थाओं द्वारा हलाल प्रमाणित किया जाता है। आप प्रॉडक्ट पर इसका मार्का देख सकते है।
शाकाहारी प्रोडक्ट्स में हलाल मार्क क्यों ?
इस्लाम का तर्क – दरअसल, कई खाने के प्रोडक्ट्स में Gelatin, Glycerine मिला होता है. ऐसे ज्यादातर प्रोडक्ट्स में सूअर की चर्बी मिली होती है। इसी तरह कई pharmaceutical और cometics प्रोडक्ट्स में भी Animal by ingredients का इस्तेमाल किया जाता है। कई परफ्यूम में एल्कोहल मिला होता है। इन सभी चीजों को इस्लाम में हराम बताया गया तो इनसे बनने वाले प्रोडक्ट्स भी मुसलमानों को लिए हराम हो जाते है। अगर इन डेली यूज प्रोडक्ट्स पर हलाल सर्टिफिकेट है, तो इसका मतलब ये हुआ कि इसमें कोई भी ऐसी चीज का इस्तेमाल नहीं किया गया है जिसकी इस्लाम में मनाही है।
हलाल सर्टिफिकेट कौन जारी करता है?
भारत में हलाल सर्टिफिकेट देने के लिए कोई सरकारी संस्था नहीं है। भारत में करीब एक दर्जन प्राइवेट बॉडीज है जो ये काम करती है. और इनमें से कई का सर्टिफिकेट सऊदी अरब और UAE जैसे देशों में भी मान्य होता है। इनमें जमीयत उलेमा ई हिन्द हलाल ट्रस्ट , हलाल इंडियां प्रा. लिमिटेड , हलाल सर्टिफ़िकेशन ऑफ इंडिया प्रमुख हैं। मुस्लिम देशो में हलाल सर्टिफिकेट देने का काम वहां की कोई सरकारी बॉडी ही करती है।
भारत में सर्टिफिकेट
असल में भारत में अलग-अलग वस्तुओं के लिए अलग-अलग सर्टिफिकेट का प्रावधान है जो उनकी गुणवत्ता सुनिश्चित करते हैं। जैसे औद्योगिक वस्तुओं के लिए ISI मार्क, कृषि उत्पादों के लिए एगमार्क, प्रॉसेस्ड फल उत्पाद जैसे जैम अचार के लिए एफपीओ, सोने के लिए हॉलमार्क, आदि। लेकिन हलाल का सर्टिफिकेट प्राइवेट मुस्लिम संस्थाएँ देती है।
आप की क्रिया-प्रतिक्रिया स्वागतेय है।
इसे भी जानें –
आर्थिक रूप से भारत कि अर्थ व्यवस्था को कमजोर करने का प्राथमिक प्रयास,लेकिन हिन्दुओ की टालने की प्रवर्ति ओर अनदेखा करने की आदत स्थिति को विस्फोटक रूप तक पहुँचा सकती है,सावधान ओर चोक्कन्ने रहने का समय आ गया हे वरना पिढीयॉ माफ नही करेगी।
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