Janmashtami 2024 : भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव को श्री कृष्ण जन्माष्टमी कहते हैं । भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव को पूरे देश और विदेशों में धूमधाम से मनाया जाता हैं। देश विदेश के श्री कृष्ण मंदिरों में विशेष सजावट एवम् भजन कीर्तन होता है। मध्यरात्रि में कान्हा (श्री कृष्ण ) का स्नान, नव परिधान, विशेष श्रृंगार होता है। श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर्व को देश विदेश में विशेष पर्व की तरह मनाते हैं। इस दुर्लभ संयोग में श्रीकृष्ण की आराधना से अक्षय पुण्य की प्राप्ति एवं मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
भगवान श्री कृष्ण का जन्म
श्रीमद्भागवत गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि
यदा-यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवती भारत । अभ्युत्थानमधर्मस्य तादात्मानम सृजाम्याहम ।। गीता ४- ७ ।।
जब जब धर्म की हानि होगी और अधर्म बढ़ेगा तब तब मैं धरती पर अवतार लेकर आता रहूंगा और धर्म की रक्षा और स्थापना करूंगा एवम् अधर्म का नाश करूंगा ।
- जन्मतिथि – भाद्रपद मास की कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि
- जन्म समय – मध्यरात्रि
- जन्म स्थान – मथुरा ( कंस के कारागार में )
- युग – द्वापर
- माता-पिता – देवकी-वासुदेव
- बाल्यकाल का नाम – कान्हा ( कन्हैया )
- सखा – सुदामा
- अवतार – दशावतारों में आठवां एवं चौबीस अवतारों में २२ वाँ
द्वापर युग में मथुरा में राजा उग्रसेन का राज्य था। वह बड़े प्रजा वत्सल थे। लेकिन उनका पुत्र कंस बड़ा ही क्रूर और अत्याचारी था। कंस की बहन देवकी थी , जिसका विवाह वासुदेव से हुआ था विवाह के पश्चात् कंस अपनी बहन देवकी को ससुराल पहुंचाने जा रहे थे, तभी एक आकाशवाणी हुई। जिसमे बताया गया कि देवकी के आठवें पुत्र के हाथों कंस का वध होगा ।
इस के बाद कंस ने वासुदेव और देवकी को कारागार में डाल दिया। अष्टमी के दिन रात्रि १२ बजे कंस के कारागार के सभी ताले टूट गए और पहरेदार गहरी नींद में सो गए।
श्री कृष्ण का जन्म जन्म भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि , रोहिणी नक्षत्र में (वृषभ का चन्द्रमा) बुधवार की मध्यरात्रि में हुआ ।
श्री कृष्ण के जन्म के समय पूरे ब्रह्माण्ड का वातावरण अनुकूल हो गया। देवी देवता मंगल गीत गाने लगे। सृष्टि के सभी जीव हर्षित हुए। कान्हा का बाल्यकाल गोकुल में माता यशोदा कि गोद में बीता । कंस से बचाने के लिए वासुदेव ने कान्हा को नंदबाबा और यशोदा के वहां रखा।
श्री कृष्ण जन्माष्टमी का महत्त्व
हमारे धर्म ग्रंथों में भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए प्रतिवर्ष भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष अष्टमी को व्रत रखते हैं। श्री कृष्ण के जन्म समय मध्य रात्रि में विधि विधान से पूजा अर्चना करते हैं। और भजन कीर्तन, सत्संग करते हैं। एवम् धूमधाम से जन्मोत्सव मनाया जाता हैं। इस दुर्लभ संयोग में श्रीकृष्ण की आराधना से अक्षय पुण्य की प्राप्ति एवं मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
श्री कृष्ण जन्माष्टमी कि मध्य रात्रि में बाल गोपाल की प्रतिमा को स्नान करा कर वस्त्र धारण करवा धूप दीप, फूल आदि से वंदन किया जाता हैं। और भोग लगाया जाता हैं। कान्हा के लिए पालना बांधा जाता हैं एवम् झूला झुलाया जाता हैं ।
आजकल महाराष्ट्र और गुजरात में दही हांडी का आयोजन होता है। बाल्यकाल में कान्हा को माखन, दही बहुत प्रिय था इसलिए दही हांडी का आयोजन भी विशेष होता है ।
जन्माष्टमी को विधि विधान से करने पर घर में सुख समृद्धि आती हैं और घर के सदस्य दीर्घायु होते हैं
कब है जन्माष्टमी 2024 में
पञ्चाग के अनुसार भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 26 अगस्त 2024 , को प्रातः 3 बज कर 39 मिनट से प्रारम्भ होकर 27 अगस्त 2024 , प्रातः 2 बज कर 19 मिनट पर समापन होगी । ऐसे में जन्माष्टमी पर्व 26 अगस्त 2024 , सोमवार को मनाई जाएगी ।
भगवान श्री कृष्ण से जुड़े तीर्थ स्थल
श्री कृष्ण जन्मभूमि मथुरा
श्री कृष्ण का जन्म मथुरा में मामा कंस के कारागार में हुआ। यह प्रसिद्ध मन्दिर है। सर्व प्रथम महमूद गजनवी एवम् इसके बाद औरंगजेब ने इस मन्दिर को तुड़वा दिया था। एवम् इसके एक भाग में मस्जिद बना दी। लेकिन सनातन धर्म और हिन्दूओ की आस्था आज भी कायम हैं।
गोकुल का मन्दिर
श्री कृष्ण का बाल्यकाल गोकुल में बीता । यह मथुरा से15 किलोमीटर दूर है। गोकुल और मथुरा के बीच यमुना नदी है । यहां पर श्री कृष्ण करीब 11 वर्ष रहे । वर्तमान गोकुल श्री वल्लभाचार्य के पुत्र श्री विठ्ठलनाथजी ने बसाया । गोकुल के पास 2 km दूर महावन है इसे पुरानी गोकुल कहते है । यहा पर मथुरानाथ द्वारीकानाथ चौरासी खंभों का मंदिर , नंदेश्वर महादेव मंदिर है।
वृन्दावन का मंदिर
मथुरा के पास वृन्दावन में बांके बिहारी का प्रसिद्ध मन्दिर है। यह बृज क्षैत्र कहलाता हैं। बृज क्षैत्र में गोवर्धन पर्वत भी है। जिसे श्री कृष्ण ने एक ऊंगली पर धारण किया था और इन्द्र का अभिमान तोड़ा था।
बरसाना का मन्दिर
राधा जी बरसाना गांव की रहने वाली थी। इस मन्दिर का निर्माण राजा वीर सिंह जी ने 1675 में करवाया था। बरसाने की होली प्रसिद्ध हैं ।
संदीपन आश्रम उज्जैन
मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध तीर्थ उज्जैन में संदीपन ऋषि का आश्रम है । इसी आश्रम में भगवान श्री कृष्ण ने शिक्षा ग्रहण की थी । यह स्थान भी श्री कृष्ण से जुड़ा होने से प्रसिद्ध हैं ।
श्रीद्वारिका का मन्दिर
श्री कृष्ण मथुरा को छोड़ गुजरात के समुद्र तट स्थित द्वारिका गए। द्वारिका को श्री कृष्ण ने बसाया। इसीलिए उनको द्वारकाधीश कहा जाता हैं। द्वारिका में गोमती द्वारका धाम और बेट द्वारका पुरी है। पुरानी द्वारका समुद्र में लीन हैं जिसके आज भी प्रमाण मौजूद हैं ।
श्री कृष्ण का निर्वाण स्थल भालका तीर्थ
गुजरात में प्रभास क्षेत्र में सोमनाथ मन्दिर के पास भालका तीर्थ है । यही पर एक बहलिए के द्वारा अनजाने में उनके पैरों में लगने से श्री कृष्ण ने इस शरीर आवरण को छोड़ा था। यह स्थान हिरण्या , कपिला और सरस्वती के संगम पर स्थित हैं ।
श्री नाथ जी का मन्दिर नाथद्वारा
राजस्थान के उदयपुर से 50 km की दूरी पर नाथद्वारा स्थित हैं। यह मंदिर वैष्णव सम्प्रदाय के वल्लभ सम्प्रदाय का प्रमुख तीर्थ स्थानों में सर्वोपरि माना जाता हैं। जब भारत में क्रूर ओरंगजेब ने गोकुल का मन्दिर तोड़ने का आदेश दिया था, तब वल्लभ गोस्वामी वहा से मूर्ति लेकर रवाना हुए । जिसे मेवाड़ के महाराणा राज सिंह जी ने वल्लभ गोस्वामी को आश्रय दिया। एवम् श्री कृष्ण की मूर्ति को वर्तमान नाथद्वारा ( सिहाड़) में स्थापित कर मन्दिर का निर्माण करवाया।
श्री जगन्नाथ मंदिर
सनातन संस्कृति में जगन्नाथ मन्दिर चारों धाम में से एक है। मूलतः यह मन्दिर विष्णु के रूप पुरुषोत्तम नील माधव को समर्पित है। यहां भगवान जगन्नाथ अपने बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ बिराजते है। यह उड़ीसा के पूरी में स्थित हैं।
इसके अलावा भी श्री कृष्ण के देश विदेश में सैकड़ों मन्दिर है, जिसमे से गुजरात के डाकोर में रणछोड़ राय मन्दिर, श्री कृष्ण मठ उद्दुपी कर्नाटक , चित्तौड़गढ़ के निकट सांवरिया जी मन्दिर, पंढरपुर का विठोबा मन्दिर, भद्रकाली मंदिर कुरुक्षेत्र आदि मन्दिर प्रसिद्ध हैं।
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