देवशयनी एकादशी 2024 के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग, अमृत सिद्धि योग, शुभ योग और शुक्ल योग बन रहे हैं। ये सभी योग पूजा पाठ और शुभ कार्यों के लिए अच्छे माने जाते हैं।
देवशयनी एकादशी
सनातन संस्कृति में आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहा जाता हैं। इस देवशयनी एकादशी को हरिशयनी एकादशी भी कहते हैं। वैसे तो पूरे वर्ष आने वाली एकादशियो का अपना महत्व है लेकिन देवशयनी एकादशी को सभी एकादशीओ में विशेष माना जाता हैं।
देवशयनी एकादशी का महत्त्व
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार इस एकादशी का व्रत सभी मनोकामनाओं की पूर्ति वाला माना गया है। इस एकादशी को पद्मा एकादशी भी कहते हैं। पद्मपुराण के अनुसार इस दिन व्रत करने से जाने अनजाने में हुए पापों का नाश होता है। इस दिन विधिपूर्वक व्रत करने से मोक्ष की प्राप्ति होती हैं।
हमारी सनातन परम्परा में देवशयनी एकादशी का विशेष महत्त्व है। इस एकादशी से भगवान श्री विष्णु (श्री हरि) राजा बलि को दिए वचन के अनुसार क्षीर सागर में योगनिद्रा में (शयन) करते हैं। इस एकादशी से चातुर्मास प्रारम्भ होता है । इस एकादशी से देवोत्थान एकादशी तक सभी प्रकार के मांगलिक कार्य निषिद्ध रहते हैं। हालाकि देवपुजन, पूजा अनुष्ठान, वाहन, आभूषण जैसे कार्य किए जा सकते हैं।
देवशयनी एकादशी के दिन से चातुर्मास का प्रारम्भ होता है। इस समय में मानसून सक्रिय हो जाता हैं। वातावरण में नमी के कारण कई तरह सूक्ष्म जीव जंतुओं का जन्म होता है। पृथ्वी पर पेड़ पौधे का भी अंकुरण होता है, इसलिए उनको नुकसान नहीं पहुंचे इसलिए ऋषि मुनि और सन्त चातुर्मास करते हैं।
देवशयनी एकादशी की कथा
द्वापर में युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी के बारे में जिज्ञासा से प्रश्न कर इसके बारे में जानना चाहा। तो श्री कृष्ण ने कहा कि जो कथा ब्रह्मा जी ने नारद जी को सुनाई वहीं कथा में तुमसे कहत हूं। ब्रह्माजी ने नारद जी से कहा कि हे नारद ! तुमने कलियुग के जीवों के उद्धार के लिए उत्तम प्रश्न किया है । क्योंकि देवशयनी एकादशी सब व्रतों में उत्तम है । इससे समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। जो मनुष्य यह व्रत करेगा उसकी मनोकामना पूर्ण होती हैं ।
ब्रह्मा जी ने नारद जी को यह कथा सुनाई कि सूर्यकुल में मान्धाता नाम के एक चक्रवती राजा हुए। जो महान प्रतापी और प्रजा वत्सल थे। उनके राज्य में प्रजा सुखी एवम् धन धान्य से युक्त थी। राज्य में प्रजा को कोई परेशानी नहीं थी। एक समय में उनके राज्य में तीन वर्षों तक वर्षा नहीं हुई। इससे राज्य में अकाल पड़ा और प्रजा दुखी होने लगी।
अकाल के कारण राजा और प्रजा दुखी होने लगे। राज्य में सदकार्य एवम् धर्मार्थ के कार्य भी बंद हो गए । इस कारण राजा कुछ सेना को लेकर वन में चले गए। राजन अनेक ऋषि मुनियों के आश्रम होते हुए ऋषि अंगिरा के आश्रम में पहुंचे।
ऋषि अंगिरा ब्रह्मा जी के पुत्र थे। राजा ने ऋषि को प्रणाम किया। ऋषि ने राजा से आने का प्रयोजन पूछा। राजा ने कहा कि सब प्रकार के सद्कर्म करने पर भी मेरे राज्य में अकाल पड़ा है और इससे प्रजा बहुत दुखी हैं। मैने जीवन में धर्मार्थ कार्य किए हैं। लेकिन फिर भी अकाल के कारण सभी जीव और प्रजा दुखी हैं।
मुझे इसका उपाय बताए । तब अंगिरा ऋषि ने राजा से कहा कि आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी का विधि पूर्वक व्रत करने का उपाय बताया। और कहा कि इस व्रत के प्रभाव से तुम्हारे राज्य में वर्षा होगी और प्रजा सुखी होगी ।
क्योंकि इस एकादशी का व्रत सब सिद्धियों को प्रदान करने वाला है । और समस्त संकटों का नाश करने वाला है। इस एकादशी का व्रत तुम प्रजा सहित करोगे तो तुम्हें फल अवश्य मिलेगा।
ऋषि अंगिरा के वचन को सुनकर राजा अपने राज्य में वापस आए और एकादशी का विधिपूर्वक व्रत किया। व्रत के प्रभाव से राज्य में वर्षा हुई और पहले की तरह प्रजा सुखी हो गई। सभी सुख समृद्धि वापस आ गई।
अतः देवशयनी एकादशी का व्रत सभी मनुष्यों को करना चाहिए। यह व्रत लोक और परलोक दोनों मे मुक्ति देने वाला है। इस कथा को पढ़ने और सुनने से मनुष्यों के समस्त पापों का नाश होता है।
देवशयनी एकादशी 2024 को बन रहे 4 दुर्लभ संयोग
इस वर्ष की देवशयनी एकादशी पर 4 शुभ योग बन रहे हैं। देवशयनी एकादशी के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग, अमृत सिद्धि योग, शुभ योग और शुक्ल योग बन रहे हैं। ये सभी योग पूजा पाठ और शुभ कार्यों के लिए अच्छे माने जाते हैं। व्रत के दिन अनुराधा नक्षत्र और पारण वाले दिन ज्येष्ठा नक्षत्र है।
देवशयनी एकादशी का शुभ मुहूर्त
देवशयनी एकादशी दिनांक 17 जुलाई 2024 को हैं । आषाढ़ शुक्ल एकादशी का प्रारम्भ -16 जुलाई 2024 को सायं 8 बज कर 33 मिनट से प्रारंभ एवम् एकादशी का समापन 17 जुलाई 2024 को सायं 9 बज कर 02 मिनट पर होगा। उदय तिथि के अनुसार 17 जुलाई को देवशयनी एकादशी का पर्व मनाया जाएगा। तो वहीं पारणा का समय 18 जुलाई को सुबह 5ः35 बजे से लेकर 8ः20 बजे तक रहेगा।
देवशयनी एकादशी पूजा विधि
देवशयनी एकादशी के दिन प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर, स्नानादि से निवृत्त होकर भगवान श्री विष्णु की प्रतिमा या तस्वीर को आसन पर विराजमान करके षोडशोपचार करना चाहिए। भगवान श्री विष्णु की प्रतिमा या तस्वीर को गंगाजल से पवित्र करे। एवम् नए वस्त्र धारण कराए । वस्त्र पीले रंग के हो तो अति उत्तम।
श्री विष्णु को पीले फूल और पीले चन्दन से तिलक लगाए । धूप दीप और नेवेध्य चढ़ाए । हो सके तो विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें या भगवान से प्रार्थना करे। रात्रि को भजन कीर्तन , सत्संग करे। सोने से पूर्व भगवान श्री विष्णु को शयन कराए ।
देवशयनी एकादशी पर ये उपाय करें
आपकों देवशयनी एकादशी पर उत्तम स्वास्थ्य के लिए, सुख समृद्धि के लिए , पापों से मुक्ति पाने के लिए एवम् सौभाग्य प्राप्ति हेतु निम्न उपाय करने चाहिए ।
उत्तम स्वास्थ्य के लिए
स्वास्थ्य लाभ के लिए देवशयनी एकादशी के दिन दक्षिणावर्ती शंख में गंगाजल भरकर भगवान श्री विष्णु का अभिषेक करे । यदि आप के घर में कोई रोग से पीड़ित हैं तो यह उपाय करने से स्वास्थ्य लाभ होता है।
सुख समृद्धि के लिए
देवशयनी एकादशी के दिन भगवान श्री विष्णु को केसर मिले दूध से अभिषेक करें । व्रत रखें और भगवान से प्रार्थना करे कि आपके जीवन से सभी आर्थिक समस्याएं दूर हो जाए।
पापों से मुक्ति पाने के लिए
इसके लिए देवशयनी एकादशी के दिन प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नहाने के पानी में थोड़ा आंवला का रस मिलाकर नहाए । इससे आपको पुण्य फल की प्राप्ति होती हैं ।
सौभाग्य प्राप्ति के लिए
देवशयनी एकादशी को व्रत अवश्य करें। श्री विष्णु जी को प्रसन्न करने के लिए विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। एवम् यथा योग्य जरूरत मंद को दान दे ।
देवशयनी एकादशी व्रत नियम
- देवशयनी एकादशी को सात्विक भोजन करना चाहिए।
- व्रत करने वालो को दूसरों के प्रति घृणा और बुरे कर्मो से दूर रहना चाहिए।
- भगवान श्री विष्णु को पीला रंग प्रिय है। पूजा में पीली पूजन सामग्री का प्रयोग उत्तम रहता हैं। एवम् स्वयं भी पीले वस्त्रों का प्रयोग करें।
- देवशयनी एकादशी को बाल और नाखून नहीं काटे।
- विष्णु जी को तुलसी अति प्रिय हैं। तुलसी को हरिप्रिया भी कहते हैं। इसे एक दिन पूर्व ही तोड़कर रख ले क्योंकि एकादशी के दिन तुलसी पत्र तोड़ना वर्जित हैं।
- शास्त्रों में भोजन में चावल का प्रयोग वर्जित माना जाता हैं।
निष्कर्ष ( Conclusion )
आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष एकादशी को देवशयनी एकादशी कहते हैं। सनातन धर्म में इस एकादशी का विशेष महत्व है। यह व्रत लोक और परलोक दोनों मे मुक्ति देने वाला है। एवम् जाने अनजाने में हुए पापों का नाश करने वाला है। इस व्रत को करने से हमारी मनोकामनाए पूर्ण होती हैं। यह मान्यता ही नहीं बल्कि सनातन सत्य है। प्रत्येक हिन्दू को यह व्रत अवश्य करना चाहिए ।
आपके अमूल्य सुझाव , क्रिया – प्रतिक्रिया स्वागतेय है।
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