क्या विज्ञान रामसेतु को मान्यता देता है ? सैटेलाइट से क्या दिखता है ?

भारत की पवित्र भूमि ने ऐसे असंख्य चमत्कारों को जन्म दिया है जिन्हें केवल आस्था का विषय नहीं, बल्कि अनुसंधान और विवेचन का आधार भी बनाया गया है। उन्हीं चमत्कारों में एक है – रामसेतु

अब विज्ञान की भी सहमति

यह वही सेतु है जिसके विषय में रामायण में वर्णन आता है – भगवान श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई करने हेतु वानर सेना के सहयोग से समुद्र पर एक पत्थर-पुल का निर्माण करवाया था। सदियों सेवामपंथियों ने इसे केवल एक पौराणिक कथा माना गया, लेकिन जब सैटेलाइट इमेजिंग और विज्ञान ने भी इस रहस्य की परतें खोलनी शुरू कीं, तो प्रश्न खड़ा हुआ:

क्या वाकई रामसेतु एक ऐतिहासिक और वैज्ञानिक संरचना है? क्या सैटेलाइट से हमें भगवान राम के बनाए पुल के प्रमाण मिलते हैं ?

आइए, विज्ञान, भूगर्भ शास्त्र और श्रद्धा के साथ इस दिव्य विषय को समझते हैं।

रामसेतु का ऐतिहासिक और धार्मिक उल्लेख

  • रामसेतु, जिसे आधुनिक रूप में एडम्स ब्रिज भी कहा जाता है, भारत के रामेश्वरम द्वीप से लेकर श्रीलंका के मन्नार द्वीप तक लगभग 48 किलोमीटर तक फैली हुई एक उथली जल-रेखा (shoal) है।
  • वाल्मीकि रामायण, कम्बन रामायण, और स्कंद पुराण सहित कई ग्रंथों में इसका उल्लेख है।
  • इसे सेतुबंध रामेश्वर भी कहा गया है – ‘जहाँ प्रभु श्रीराम ने समुद्र को बाँधने का चमत्कार किया’।

सैटेलाइट क्या कहता है ? NASA और विज्ञान की नजर में रामसेतु

वर्षों से इस बात को लेकर विवाद रहा कि रामसेतु एक प्राकृतिक संरचना है या मानव निर्मित पुल। लेकिन विज्ञान के कुछ यंत्रों ने इसकी वास्तविकता की ओर इशारा किया है:

1. NASA की सैटेलाइट इमेजिंग:

  • NASA (नासा) की उपग्रह तस्वीरों में स्पष्ट रूप से एक समानान्तर पत्थरों की श्रृंखला दिखाई देती है, जो समुद्र के बीचोबीच एक सेतु जैसी आकृति बना रही है।
  • यह तस्वीरें MODIS (Moderate Resolution Imaging Spectroradiometer) के ज़रिये ली गई थीं।

2. Geological Studies:

  • भूगर्भीय वैज्ञानिकों के अनुसार, इस संरचना में जो पत्थर पाए गए हैं, वे आसपास की रेत या भूमि से बहुत पुराने हैं
  • Science Channel की एक डॉक्युमेंट्री (11 दिसंबर 2017) में Dr. Alan Lester और अन्य विशेषज्ञों ने कहा कि यह संरचना प्राकृतिक नहीं, बल्कि मानव हस्तक्षेप के प्रमाण देती है।
  • डॉक्युमेंटरी के अनुसार प्रख्यात भूगर्भ वैज्ञानिक डॉक्टर ऐलन लेस्टर ने भी इस बात को माना कि हिंदूओं के आराध्य भगवान राम ने इस पुल का निर्माण करवाया। एक अन्य विश्लेषक ने NASA से ली गयी सेटेलाइट चित्र के आधार पर बताया कि ये एक रेत की दीवार पर रखी गयी चट्टानो की एक शृंखला है , रेत की दीवार (आधार) एक प्राकृतिक संरचना है किंतु उसके उपर रखी गयी चट्टाने मानव निर्मित है।

“The stones appear to be placed deliberately – it’s not a natural formation.” – Science Channel

3. पुरातत्ववेत्ता चेलसी रोज़ का खुलासा

प्रख्यात पुरातत्ववेत्ता चेलसी रोज़ ने एक चौंकाने वाला खुलासा करते हुए कहा की वेज्ञानिको ने जब तकनीक का इस्तेमाल करते हुए इन चट्टानो और रेत कि उम्र का पता किया तो मालूम हुआ कि चट्टानो की उम्र लगभग 7000 वर्ष पुरानी है जबकि इसके नीचे की रेत लगभग 4000 वर्ष पुरानी है जो कि एक बहुत बड़ा पहलू है जो दर्शाता है कि ये पुल प्राकृतिक नहीं बल्कि मानवनिर्मित है. यानी पहले पुल बना और उसके 3000 सालों के बाद इसके नीचे प्राकृतिक रूप से रेत की दीवार बनी. वैज्ञानिको ने माना कि उस काल में समुद्र पर ऐसा तैरने वाला पुल बनाना एक अलौकिक उपलब्धि थी।

4. भूगर्भ विभाग GSI के तीन पूर्व Director General की रिपोर्ट

भारत के भूगर्भ विभाग GSI के तीन पूर्व Director General ने अपनी एक रिपोर्ट में भी इस बात की पुष्टि की और माना कि समुद्र के बीचोंबीच मूँगे की प्राकृतिक चट्टाने नहीं बन सकतीं , बाद में इस रिपोर्ट को अदालत ने भी संदर्भ के लिए इस्तेमाल किया।

क्या यह मानव निर्मित है? वैज्ञानिक तर्क

विभिन्न शोधों में यह स्पष्ट हुआ कि:

  • रेत और मिट्टी की परतें नई हैं, लेकिन उनके ऊपर रखे पत्थर हजारों वर्ष पुराने हैं।
  • यह संकेत देते हैं कि पत्थर जान-बूझकर रखे गए हैं – यानी मानव द्वारा सेतु निर्माण

तथ्य :

  • पत्थरों की बनावट और लंबाई लगभग समान।
  • पूरा पुल सीधा रेखीय है – एक प्राकृतिक घटना के लिए असामान्य।
  • पानी की गहराई बहुत कम – जिससे पुल बनाना व्यावहारिक लगता है।

क्या यह वही रामसेतु है जिसे श्रीराम ने बनाया ?

वैज्ञानिक तर्कों के बावजूद, यह कहना कि “हाँ, भगवान श्रीराम ने इसे बनाया,” विज्ञान के दायरे से बाहर है। परंतु-

  • जब धार्मिक ग्रंथों की बात,
  • लोक परंपराओं की मान्यता,
  • और अब विज्ञान के संकेत
    – सभी एक ही दिशा में इशारा करें, तो संयोग नहीं, सत्य का संकेतन होता है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

Q. रामसेतु कहाँ स्थित है ?

उत्तर: रामसेतु भारत के तमिलनाडु स्थित रामेश्वरम से लेकर श्रीलंका के मन्नार द्वीप तक फैला है, जिसकी लंबाई लगभग 48 किमी है।

Q. क्या NASA ने रामसेतु को श्रीराम से जोड़ा है ?

उत्तर: NASA ने यह दावा नहीं किया कि इसे श्रीराम ने बनाया, लेकिन उनकी सैटेलाइट तस्वीरों में एक स्पष्ट पुलनुमा संरचना दिखाई दी है। और बताया की यह मानव निर्मित है ।

Q. क्या यह संरचना मानव निर्मित है ?

उत्तर: कई भूगर्भीय अध्ययनों और डॉक्युमेंट्रीज़ ने संकेत दिया है कि यह पूरी संरचना प्राकृतिक नहीं, बल्कि मानव निर्मित है।

Q. क्या भारत सरकार ने इसे मान्यता दी है ?

उत्तर: भारत सरकार ने इसे पुरातात्विक धरोहर के रूप में अभी तक घोषित नहीं किया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में एक केस के दौरान यह बात आई कि सरकार इसे “पौराणिक” मानती है।

निष्कर्ष : जब श्रद्धा और विज्ञान एक हो जाएं

रामसेतु केवल एक भूगोलिक संरचना नहीं है। यह आस्था, परंपरा और इतिहास का संगम है। जब विज्ञान भी उसी दिशा में इशारा करता है, जहाँ हजारों वर्षों से श्रद्धा अपना दीप जला रही है, तो यह किसी चमत्कार से कम नहीं।

रामसेतु हमें यह सिखाता है कि जिसे हम आज कल्पना मानते हैं, वह कल विज्ञान की पुष्टि पा सकता है।
यह वह सेतु है जो भूतकाल और वर्तमान, श्रद्धा और तर्क, और भारत और विश्व के विज्ञान के बीच पुल बनाता है।

“यह केवल पत्थरों की श्रृंखला नहीं, बल्कि एक राष्ट्र की आत्मा का प्रतिबिंब है।”

हैरानी की बात ये है की हमारे देश में ही श्री राम के अस्तित्व को लेकर विरोधाभास है जबकि पश्चिमी देश अब इस पर वैज्ञानिक सबूतों के आधार पर विश्वास करने लगे है….पृथ्वी ग्रह पर ऐसी संरचना बनायी जो हज़ारों वर्ष बाद आज भी अंतरिक्ष से देखी जा सकती है…ऐसे है हमारे मर्यादा परूषोत्तम प्रभु श्री राम…..जय श्री राम !

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