परिचय
सृष्टि के रचयिता जगतपिता ब्रह्मा जी की यज्ञस्थली और ऋषि मुनियों की तपस्थली पुष्कर तीर्थ की अपार महिमा है। पुष्कर तीर्थ राजस्थान (भारत) के अजमेर शहर से उत्तर पश्चिम में 11 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं पुष्कर में कार्तिक एकादशी से पूर्णिमा तक मेला लगता हैं । इस सरोवर में स्नान करने से पापों का नाश होता हैं एवम् पुण्यों की प्राप्ति होती हैं।
पौराणिक महत्त्व
पुष्कर की महिमा और मान्यताओं के बारे में पद्मपुराण में वर्णन मिलता हैं। ब्रह्मा जी ने पुष्कर में यज्ञ किया था। पुष्कर की महिमा का उल्लेख रामायण के सर्ग 62 के 28 वे श्लोक में —
विश्वामित्रों विश्वामित्रों अपि धर्मात्मा भुयास्यतेपे महातपा:। पुष्करेषु नरश्रेष्ठ दश वर्षशतानि च ।।
अर्थात् विश्वामित्र के पुष्कर तीर्थ में तपस्या करने का वर्णन किया गया है। सांची स्तूप के दान लेखों में, ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में कई बौद्ध भिक्षुओं के दान का वर्णन मिलता हैं जो पुष्कर में निवास करते थे। पौराणिक दृष्टि से पुष्कर तीर्थ की अपार महिमा है। वज्रनाभ नाम के राक्षस से पुष्कर क्षेत्र आतंकित था। ब्रह्मा जी ने उसको मारने के लिए कमल का प्रहार कर मार डाला। उस कमल से जो तीन बूंदे गिरी। ये तीनों स्थल जयेष्ठ पुष्कर, मध्य पुष्कर एवम् कनिष्ठ पुष्कर से प्रसिद्ध हैं। ज्येष्ठ पुष्कर के देवता ब्रह्मा जी, मध्य पुष्कर के विष्णू जी एवं कनिष्ठ पुष्कर के देवता शिव हैं।
मुख्य पुष्कर को ज्येष्ठ पुष्कर एवम् कनिष्ठ पुष्कर को बूढ़ा पुष्कर कहा जाता हैं। वज्रनाभ राक्षस का वध करने के बाद ब्रह्मा जी ने इस स्थान को पवित्र करने के उद्देश्य से यज्ञ किया। कार्तिक एकादशी से यज्ञ कर उसकी पूर्णाहुति कार्तिक पूर्णिमा के दिन सम्पन्न हुई। यज्ञ की स्मृति में पुष्कर में प्रतिवर्ष कार्तिक एकादशी से पूर्णिमा तक मेला लगता हैं।
यज्ञ प्रारम्भ करने से पहले ब्रह्मा जी ने अपनी पत्नी सावित्री को बुला लाने के लिए अपने पुत्र नारदजी से कहा। नारद जी के कहने पर जब सावित्री जाने लगीं। तो नारदजी के कहने से सावित्री देव ऋषियों की पत्नियों को साथ लेने की वजह से विलम्ब हो गया। यज्ञ के नियमों के तहत पति और पत्नी दोनों कि उपस्थिति आवश्यक होती है। इसके लिए इन्द्र ने एक कन्या को गाय से पवित्र किया और उसका विवाह ब्रह्मा जी के साथ सम्पन्न कराया। गाय से पवित्र करने से उस कन्या का नाम गायत्री रखा।
जैसे ही सावित्री पुष्कर यज्ञ स्थल पहुंची तो ब्रह्मा जी को गायत्री के साथ बैठे देखा तो उसने क्रोधित होकर ब्रह्मा जी को शाप दिया कि पुष्कर के अलावा आपका कोई मन्दिर नहीं होगा। इन्द्र देव को शाप दिया कि युद्ध में तुम कभी विजय नहीं होंगे। ब्राह्मणों को शाप दिया कि तुम सदा दरिद्र रहोगे। गाय को शाप दिया कि तुम सदा गन्दी वस्तुओं का सेवन करोगी। कुबेर को शाप दिया कि तुम धनहीन हों जाओगे।
यज्ञ की समाप्ति पर गायत्री ने सभी को शाप से मुक्ति दिलाई और ब्राह्मणों से कहा तुम सदा पूजनीय रहोगे। और इंद्रदेव को कहा तुम हार कर भी स्वर्ग में निवास करोगे।
पुष्कर तीर्थ की अपार महिमा
सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी की यज्ञस्थली और ऋषि मुनियों की तपस्थली पुष्कर तीर्थ को सब तीर्थों का गुरू कहा जाता हैं। हमारे धर्म ग्रंथों में पुष्कर, कुरुक्षेत्र, हरिद्वार, गया और प्रयाग को पंचतीर्थ कहा जाता हैं। इन पंचतीर्थों में पुष्कर को सर्वाधिक पवित्र माना गया है।
सा सनातन संस्कृति में पुष्कर का काशी या प्रयाग की तरह ही महत्त्व है। चारों धाम बद्रीनाथ, जगन्नाथ, रामेश्वरम और द्वारका की यात्रा तब तक पूर्ण नहीं मानी जाती जब तक वह पुष्कर के सरोवर में स्नान नहीं कर लेता। प्रत्येक सनातन धर्म को मानने वाले हिन्दू को एक बार पुष्कर की यात्रा अवश्य करनी चाहिए।
ब्रह्मा जी का मन्दिर
विश्व का एक मात्र सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी का मन्दिर पुष्कर में स्थित हैं। इस मन्दिर में चांदी के सिक्के जड़े गए हैं। मन्दिर में चार मुखों वाली ब्रह्मा जी की मूर्ति के अलावा गायत्री माता की एक छोटी मूर्ति भी है।
पुष्कर सरोवर
पुष्कर अर्थात् ऐसा सरोवर जिसका निर्माण फूल से हुआ हो। पद्मपुराण के अनुसार पुष्कर सरोवर का निर्माण उस समय हुआ, जब यज्ञ को सुनिश्चित करते समय ब्रह्मा जी के हाथ से कमल का फूल पृथ्वी पर गिर गया। इससे पानी की तीन बूंदे पृथ्वी पर गिरी जिसमें से एक बूंद पुष्कर में गिरी जिससे पुष्कर सरोवर का निर्माण हुआ।
बावन (52) घाट
पुष्कर सरोवर के चारों ओर बावन घाट बने हुए हैं। इन घाटों का धार्मिक और पौराणिक महत्त्व है। इनमें ब्रह्म घाट, गऊ घाट, बद्री घाट, सप्तऋषि घाट आदि। पुष्कर में राजाओं द्वारा घाटों का निर्माण करवाया गया है। जैसे जोधपुर घाट, जयपुर घाट, ग्वालियर घाट, कोटा घाट, भरतपुर घाट आदि।
पुष्कर मेला
निष्कर्ष (Conclusion)
सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी की यज्ञस्थली और ऋषि मुनियों की तपस्थली पुष्कर तीर्थ राजस्थान (भारत) के अजमेर शहर से 11 किमी की दूरी पर स्थित हैं। पुष्कर तीर्थ सब तीर्थों का गुरू कहा जाता हैं। हमारे देश के पञ्च तीर्थो में पुष्कर को सर्वाधिक पवित्र माना गया है। पुष्कर में मुख्य ब्रह्मा जी के मन्दिर के अलावा और भी बहुत मन्दिर जैसे महादेव मंदिर, आप्तेश्वर मन्दिर, वराह मंदिर, सावित्री मन्दिर और रंगजी मन्दिर आदि है।
पुष्कर सरोवर का धार्मिक एवम् आध्यात्मिक महत्त्व है। सरोवर में स्नान करने से पापों का नाश होता हैं और पुण्य मिलते हैं। जिससे स्वर्ग की प्राप्ति होती हैं। कार्तिक मास एकादशी से पूर्णिमा तक मेला लगता हैं। मेले में खास कर ऊंटो, घोड़ों एवं अन्य पशुओं का व्यापार होता हैं। पुष्कर विदेशी सैलानियों के लिए भी आकर्षण का केन्द्र है। आपकों भी एक बार तो पुष्कर की यात्रा अवश्य करनी चाहिए।
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सन्दर्भ :
रामायण , पद्मपुराण