हरिद्वार : अध्यात्मिक महत्त्व एवं लाभ

हरिद्वार Haridwar – वो पुण्यभूमि है जिसे हरि का द्वार कहा जाता है। राजा भागीरथ ने पतित पावनी पुण्य सलिला मां गंगा को भगवान शिव और विष्णु के द्वारा धरती पर अवतरित करवाया। गंगा की अविरल धारा न केवल तन , मन को पवित्र करती है बल्कि यह हमारी वसुधा को हरित , पल्लवित और पुष्पित करती हुई हमारा पोषण करती है

सनातन संस्कृति एवं शास्त्रों के अनुसार हरिद्वार वह स्थान है जहां समुद्र मंथन के समय निकला अमृत भगवान धनवंतरी के हाथों से कुछ बूंदे धरती पर गिर गई थी। उज्जैन , नासिक , प्रयाग और हरिद्वार इन चारों स्थानों पर बारी – बारी से हर बारहवें वर्ष महाकुंभ का आयोजन होता है। जब हरिद्वार में कुम्भ का आयोजन होता है तो विश्व के कोने कोने से तीर्थ यात्री आते हैं और स्नानादि करे लाभ प्राप्त करते हैं।

हरिद्वार को कपिला के नाम से भी जाना जाता था। सतयुग से पहले जब गंगा जी का अवतरण नहीं हुआ तब इस स्थान को कपिला के नाम से जाना जाता था। क्योंकि ऋषि कपिल मुनि का आश्रम हरिद्वार में ही था

मां गंगा का अवतरण राजा भागीरथ ने हजारों वर्षो की तपस्या करके स्वर्ग से भगवान शिव और विष्णु जी के द्वारा धरती पर अवतरित करवाया और राजा भागीरथ के पूर्वजों की आत्मा को ऋषि के श्राप से मुक्ति मिली। उसके बाद से ही लोग अपने पूर्वजों की अस्थियों को गंगा में विसर्जन करते आ रहे हैं।

पद्मपुराण के अनुसार –

मां गंगा वैशाख शुक्ल सप्तमी को धरती पर अवतरित हुई थी। गंगा जब हरिद्वार में आईं तब यह क्षैत्र देवताओं के लिए भी दुर्लभ श्रेष्ठ तीर्थ बन गया। जो मानव इस तीर्थ में स्नान तथा विशेष रूप से श्री हरि के दर्शन करके उन की परिक्रमा करते हैं वह दुःख के भागी नहीं होते।

हरिद्वार समस्त तीर्थो में श्रेष्ठ और धर्म , अर्थ , काम और मोक्ष रूपी चारों पुरुषार्थ प्रदान करने वाला है। हरिद्वार जहां निर्मल गंगा जी नित्य प्रवाहित होती है उस हरिद्वार के पुण्यदायक उत्तम आख्यान को कहने सुनने वाला पुरूष सहस्त्रों गोदान तथा अश्वमेघ यज्ञ करने के शाश्वत फल को प्राप्त करता है।

महाभारत के अनुसार – महाभारत के वनपर्व में देवऋषि नारद युधिष्ठिर को भारतवर्ष के प्रमुख तीर्थो के बारे में बताते हुए कहते हैं कि जहां पर गंगाद्वार अर्थात् हरिद्वार को स्वर्गद्वार के समान बताया गया है। इसमें संशय नहीं है। वहा एकाग्रचित होकर कोटितीर्थ में स्नान करना चाहिए। ऐसा करने वाला मानव पुंडरिकयज्ञ का फल पाता है और अपने कुल का उद्धार कर देता है

हरिद्वार में एक रात्रि निवास करने से सहस्त्र गोदान का फल मिलता है। सप्तगंग , त्रिगंग और शक्रवर्त तीर्थ में विधिपूर्वक पितरों का तर्पण करने वाला मानव पुण्यलोक में प्रतिष्ठित होता है। इसके बाद कनखल में स्नान करके तीन राते उपवास करने वाला मानव अश्वमेघ यज्ञ का फल पाता है और स्वर्ग लोक में जाता है।

हरिद्वार के प्रसिद्ध तीर्थस्थान

हर की पौड़ी

हर की पौड़ी हरिद्वार का मुख्य स्थल है। शास्त्रोनुसार इस सृष्टि पर भगवान श्री विष्णु आएं तब श्री विष्णु जी के पांव पड़ने के कारण इस स्थान को हरि की पैड़ी कहा गया। जो कालान्तर में हर की पौड़ी हो गया।

राजा विक्रमादित्य ने अपने भाई भर्तृहरि की स्मृति में यहां कुंड और पेड़िया बनवाई (सीढ़ी नुमा घाट को पैड़ी कहते है) । भर्तृहरि ने इसी स्थान पर तपस्या करके अमरत्व प्राप्त किया था। हरिद्वार में आने वाले तीर्थ यात्री मुख्यतः हर की पौड़ी पर स्नान करते हैं। यहां स्नान करने का धार्मिक महत्त्व है।

मां मनसा देवी मन्दिर

हर की पौड़ी के पश्चिमी दिशा की ओर ऊंचे पर्वत पर मां मनसा देवी विराजमान है। यहां पर मनसा देवी का मन्दिर बना हुआ है। हरिद्वार में गंगा मां के साथ ही मां मनसा देवी का भी निवास स्थान कहा गया है।

पुराणों के अनुसार – मां मनसा देवी भगवान शिव की पुत्री है। मनसा देवी अर्थात् मन की देवी, और इनका जन्म कश्यप ऋषि से हुआ है। मां मनसा देवी मन्दिर में दो मूर्तियां स्थापित है जो प्राचीन एवम् चमत्कारी है। एक मूर्ति के पांच भुजा और मुख है । वहीं दूसरी मूर्ति में आठ भुजाएं हैं।

मां मनसा देवी अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करती है। यहां आने वाले भक्त अपनी कामना को लेकर पेड़ पर धागा बांधते हैं। अपनी मनोकामना पूर्ण होने पर धागा खोलते हैं।

मां मनसा देवी मन्दिर जाने के लिए रोपवे की सुविधा है। आप पैदल भी जा सकते हैं।

मां चण्डी देवी मन्दिर

हरिद्वार में गंगा तट के पूर्व दिशा स्थित शिवालिक पर्वत श्रृंखला के नील पर्वत पर मां चण्डी देवी मन्दिर स्थित है। दुर्गा सप्तशती के अनुसार देवी ने चण्ड – मुंड को यहीं पर वध किया था। तभी से इस स्थान का नाम चण्डी देवी है। इस मन्दिर की मुख्य प्रतिमा की स्थापना जगत गुरु आदि शंकाराचार्य द्वारा छठी शताब्दी में की थी। इस मन्दिर का वर्तमान स्वरूप काश्मीर के राजा सुचित सिंह जी द्वारा सन् 1929 में बनवाया गया।

मां चण्डी देवी मन्दिर के आस पास संतोषी माता , अंजना देवी , और हनुमान जी के मन्दिर बने हुए है।

सुरेश्वरी देवी मन्दिर

सुरेश्वरी देवी का मन्दिर सुरकूट पर्वत पर स्थित है। यह हरिद्वार से सात किलोमीटर रानीपुर के जंगलों में स्थित हैं। यह मन्दिर भगवती देवी दुर्गा को समर्पित है। यह मन्दिर भी प्राचीन और चमत्कारी है।

वैष्णोदेवी मन्दिर

हरिद्वार में हर की पौड़ी से लगभग 1 किलोमीटर दूर भीमगोड़ा में वैष्णो देवी जी का का भव्य मन्दिर है। यह जम्मू कश्मीर के प्रसिद्ध वैष्णो देवी मन्दिर के जैसा ही बनाया गया है।

कनखल जहां दक्ष प्रजापति का यज्ञ हुआ

लिंगमहापूर्ण के अनुसार – दक्ष प्रजापति ने हरिद्वार के निकट ही कनखल में यज्ञ किया था। गंगाद्वार (हरिद्वार) के समीप कनखल नामक शुभ और प्रसिद्ध स्थान है। उसी स्थान मे दक्ष की यज्ञशाला थी। इसी यज्ञशाला में सती माता भस्म हुई थी। इसलिए कनखल का विशेष महत्त्व है।

सप्त ऋषि आश्रम एवं सप्त सरोवर

हरिद्वार में इस स्थान का भी महत्त्व है। जब मां गंगा अवतरित हुई तब सातों ऋषि तपस्या में लीन थे तो गंगा ने अपनी धारा को सात भागों में विभाजित कर लिया था ताकि ऋषियों की तपस्या में कोई विध्न न आए। इस प्रकार मां गंगा संसाररूपी विष का नाश करने वाली और तीनों प्रकार के तापो का नाश करने वाली एवम् जीवनदायनी है।

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