Rameshwaram Jyotirling : शिव पुराण और स्कन्द पुराण के अनुसार यहाँ स्थापित रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की स्थापना स्वयं प्रभु श्री राम ( Shri Ram ) ने की थी। रावण से युद्ध के लिए लंका की चढ़ाई करने से पूर्व भगवान राम ने इस स्थान पर प्रभु श्री राम ने समुद्र की बालू से शिवलिंग बनाकर भगवान शिव की पूजा-अर्चना की थी।
रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग भारत के प्रमुख चार धामों में से एक दक्षिण का धाम है। रामेश्वरम में स्थापित शिवलिंग की गिनती द्वादश ज्योतिर्लिंगों में होती है। जिस प्रकार भारत के उत्तरी भाग में काशी का महत्व है उतना ही महत्व भारत के दक्षिण में रामेश्वरम है। सनातन के इस आर्टिकल में जानें द्वादश ज्योतिर्लिंगों में शामिल इस 11वें रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की महिमा के बारे में –
रामेश्वरम की स्थापना
इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना स्वयं भगवान श्री राम के द्वारा की गई है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, जब भगवान श्रीराम लंका पर आक्रमण करने जा रहे थे, तब उन्होंने समुद्र के किनारे रेत के शिवलिंग बनाकर उनकी पूजा अर्चना की थी। शिव को भगवान श्री राम अपना अराध्य देवता मानते हैं, इसीलिए युद्ध से पहले भगवान राम ने रावण से युद्ध में विजय हेतु शिव की आराधना की। इसी शिवलिंग को रामेश्वरम् कहा गया।
एक ब्राह्मण और महान शिव भक्त रावण को मारने के पाप का प्रायश्चित करने के लिए भगवान राम ने भगवान शिव की पूजा की। चूंकि वहां शिव का कोई मंदिर नहीं था, इसलिए उन्होंने लिंग लाने के लिए हनुमान को भगवान शिव के निवास स्थान कैलाश पर्वत पर भेजा।
भगवान श्री राम ने हनुमान जी को कैलाश पर्वत से एक शिवलिंग लाने का आदेश दिया था। जब हनुमान कैलाश पर्वत पहुंचे तो वहां उन्हें भगवान शिव के दर्शन नहीं हुए इसलिए वे वहां प्रतीक्षा करते हुए तप करने लगे। कुछ समय बाद शिव जी के दर्शन के बाद वे शिवलिंग लेकर जाने लगे तो शुभ मुहूर्त निकल चुका था। वहीं सीता माता ने रेत से निमित लिंग की स्थापना कर दी थी।
माता सीता द्वारा रेत से निर्मित शिवलिंग को रामलिंगम का नाम दिया गया जबकि हनुमान जी द्वारा लाये गए शिवलिंग को विश्वलिंगम कहा जाता है।
रामेश्वरम मंदिर
यह मंदिर भारत के तमिलनाडु राज्य के रामनाथपुरम जिले में स्थित है। तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई से रामेश्वरम करीब सवा चार सौ मील दक्षिण पूर्व में स्थित है। रामेश्वरम मंदिर को रामनाथ स्वामी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
रामेश्वरम मंदिर से लगभग 20 किमी दूर है जहां “हिन्द महासागर और बंगल की खाड़ी” के बीच धनुषकोडी प्वाइंट समुद्र तट पर दो महासागरों का मिलन होता है।
रामेश्वरम मंदिर की स्थापत्य कला
रामेश्वरम मंदिर वास्तु एवं स्थापत्य सुन्दर और श्रेष्ठ है । जो 15 एकड़ क्षेत्र में बना हुआ है। रामेश्वरम मंदिर का निर्माण द्रविड़ शैली में किया गया है। यहाँ प्राकार में मंदिर के अंदर सैकड़ों की संख्या में खंभे है। इन खंभों पर बेल-बूटे की सुन्दर कारीगरी की गई है। इस मंदिर का प्रवेश करीब 40 फ़ीट ऊँचा है। रामेशवरम में जो मूर्ति स्थापित है उसकी परिक्रमा करने के लिए तीन प्राकार बने है। यहाँ का गलियारा विश्व का सबसे लम्बा गलियारा माना जाता है।
रामेश्वरम मंदिर के तीर्थ
रामेश्वरम मंदिर के अंदर 22 तीर्थ हैं जिनमें से सबसे पहले तीर्थ को अग्नि तीर्थ कहा जाता है। अग्नि तीर्थ के बारे में ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त इस स्थान पर स्नान कर करता है उसके सभी पाप धुल जाते हैं। यहाँ के तीर्थम से निकलने वाला पानी अपने साथ चमत्कारिक गुण लिए हुए है।
रामेश्वरम के नाम से पूरी दुनिया में प्रचलित इस मंदिर की सबसे ख़ास विशेषता है कि यह स्थान एक शंखीय आकार के द्वीप पर अवस्थित है। इस स्थान पर 22 तीर्थम है जहाँ स्नान करने से व्यक्ति को समस्त प्रकार के रोगों और पापों से मुक्ति मिलती है। दूसरे शब्दों में कहें तो काशी की ही तरह यहाँ आने वाले हर व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। स्वयं भगवान राम ने यहाँ शिवलिंग को स्थापित किया था।
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