चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य द्वारा प्रवर्तित विक्रम संवत् ही हमारा राष्ट्रीय संवत् कहलाता है। यह सर्वथा शुद्ध और वैज्ञानिक है। यह हमारी अस्मिता और स्वाधीनता के अनुरक्षण तथा शत्रुओं पर विजय का प्रतीक भी है। इसी संवत् के अनुसार ही हमारे सभी धार्मिक अनुष्ठान, तीज त्यौहार जैसे – होली, दीवाली, दशहरा आदि मनाए जाते है। विक्रम संवत् सभी काल गणना से प्राचीन तो है ही वैज्ञानिक भी है। और यहीं विक्रम संवत् की वैज्ञानिकता है।
विक्रम संवत् का प्रारम्भ चैत्र प्रतिपदा से होता हैं। अंग्रेजो के भारत में आने से पूर्व भारत का जनसमुदाय विक्रम संवत् को ही मानता था। समाज की संपूर्ण गतिविधियां भारतीय कालगणना के अनुसार बिना किसी कठिनाई एक सहज रूप से संचालित होती थी। बिना पश्चिमी कालगणना की व्यापकता और प्रत्येक क्षैत्र में इसकी घुसपैठ के बाद भी भारतीय पंचाग (कैलेंडर) का महत्त्व कम नहीं हुआ है।
नवसंवत्सर का महत्त्व भारतीय मान्यताओं के अनुसार ब्रह्माजी ने इसी दिन से सृष्टि का निर्माण किया था। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का राज्याभिषेक इसी दिन हुआ था। महर्षि दयानंदजी ने इसी दिन विक्रम संवत् १९३२ में आर्य समाज की स्थापना की थी। संत झूलेलाल जी की जयंती भी इसी दिन मनाई जाती है।
भारतीय कालगणना के अनुसार सृष्टि का निर्माण हुए अब तक 1अरब 97 करोड़ 29 लाख 49123 वर्ष व्यतीत हो चुके हैं। इस दीर्घावधि में भारत में अनेक महापुरुष हुए। इन श्रेष्ठ व्यक्तियों की स्मृति बनाए रखने के लिए समय – समय पर अनेक संवत् चलाए गए जैसे – कलि संवत् (युगाब्ध) , बुद्ध संवत् , महावीर संवत् , शालीवाहन संवत् , विक्रम संवत् आदि। विक्रम संवत् भारत में सर्वाधिक प्रचलित हैं। इसका प्रारंभ चक्रवती सम्राट विक्रमादित्य की स्मृति में प्रारंभ किया गया था।
विक्रम संवत् की वैज्ञानिकता
भारत में प्राचीन काल से मुख्य रूप से सौर तथा चांन्द्र कालगणना व्यवहार में लाई जाती हैं। इनका सम्बंध सूर्य और चंद्रमा से है। ज्योतिष के प्राचीन ग्रंथ सूर्य सिद्धांत के अनुसार पृथ्वी सूर्य का चक्कर लगाने में 365 दिन, 15 घटी, , 31 विपल तथा 24 प्रतिविपल (365.258756484) दिन का समय लेती है। यहीं एक वर्ष का कालमान है। यहां यह याद रखना चाहिए कि सूर्य – सिद्धांत ग्रन्थ उस समय का है जब यूरोप में वर्ष के 360 दिन ही माने जाते थे ।
नक्षत्र
आकाश में 27 नक्षत्र है तथा इनके 108 पाद होते हैं। विभिन्न अवसरों पर नौ – नौ पाद मिल कर बारह राशियों की आकृति बनाते हैं। इन राशियों के नाम मेष , वृष , मिथुन , कर्क , सिंह , कन्या , तुला , वृश्चिक , धनु , मकर , कुंभ और मीन है। सूर्य जिस समय जिस राशि में स्थित होता है वहीं कालखण्ड सौर मास कहलाता हैं। वर्षभर में सूर्य प्रत्येक राशि में एक माह तक रहता है । अतः सौर वर्ष के बारह महीनों के नाम उपरोक्त राशियों के अनुसार होते हैं। जिस दिन सूर्य जिस राशि में प्रवेश करता है वह दिन उस राशि का संक्रांति दिन माना जाता है। इसीलिए मकर संक्रांति 14 जनवरी को पड़ती है ।
चांद्र वर्ष
चन्द्रमा पृथ्वी का चक्कर जितने समय में लगा लेता है वह समय साधारणत: एक चांद्र मास होता है। चंद्रमा की गति के अनुसार ही तय किए गए महीनों की अवधि नक्षत्रों की स्थिति के अनुसार कम या अधिक भी होती है। जिस नक्षत्र में चंद्रमा बढ़ते बढ़ते पूर्णता को प्राप्त होता है उस नक्षत्र के नाम पर चांद्र वर्ष के महिने का नामकरण किया गया है।
एक वर्ष में चन्द्रमा चित्रा , विशाखा , ज्येष्ठा , श्रवण , भाद्रपद , अश्विनी , कृतिका , मृगशिरा , पुष्य , मघा और फाल्गुनी नक्षत्रों में पूर्णता को प्राप्त होता है। इसीलिए चांद्र वर्ष के महीनों के नाम चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ और फाल्गुन रखें गए हैं। यहीं महीने भारत में प्रचलित है।
माह के जिस भाग में चंद्रमा घटता है वह कृष्ण पक्ष तथा बढ़ने वाले हिस्से को शुक्ल पक्ष कहा जाता हैं। चंद्रमा के बारह महीनों का वर्ष सौर वर्ष से 11 दिन, 3 घटी तथा 48 पल छोटा होता है। इसीलिए 32 माह, 16 दिन 4 घटी के बाद एक चांद्र मास की वृद्धि होती है जो पुरुषोत्तम मास या अधिक मास कहलाता है। चांद्र मास की वृद्धि या क्षय भी नक्षत्रों की स्थिति के अनुसार ही होती है।
समय की सूक्ष्मतम इकाई
समय की सूक्ष्मतम इकाई त्रुटि , प्रतिपल , पल , घटी , दिन , माह , वर्ष आदि की गणना के साथ साथ प्राचीन भारत के ऋषि मुनियों ने समय की सबसे छोटी इकाई त्रुटि का भी आविष्कार किया। महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने आज से चौदह सौ वर्षो पहले लिखें अपने ग्रंथ में समय की भारतीय इकाइयों का विशद विवेचन किया है । समय की ये इकाइयां इस प्रकार है : –
225 त्रुटि | 1 प्रति विपल |
60 प्रति पल | 1 विपल (0.4 सेकंड) |
60 पल | 1 घटी (24 मिनट) |
2.5 घटी | 1 होरा (1घंटा ) |
5 घटी या 2 होरा | 1 लग्न ( 2 घंटे ) |
60 घटी या 12 लग्न | 1 दिन |
इस सारणी से स्पष्ट है कि एक विपल आज के 0.4 सेकंड के बराबर है तथा त्रुटि का मान सेकंड का 33.750 वा भाग है। इसी प्रकार लग्न का आधा भाग जो होरा कहलाता हैं एक घंटा के बराबर है। इसी होरा से अंग्रेजी में हॉवर बना । इसी तरह एक दिन में 24 होरा हुए।
होरा
सृष्टि का प्रारम्भ चैत्र प्रतिपदा रविवार के दिन हुआ। इस दिन के पहले होरा का स्वामी सूर्य था। उसके बाद दिन के प्रथम होरा का स्वामी चंद्रमा था इसलिए रविवार के बाद सोमवार आया। इसी तरह सातों वारो के नाम सात ग्रहों पर पड़े। पूरी दुनिया में सप्ताह में सात वारो के नाम इसी प्रकार प्रचलित हुए।
इस प्रकार से स्पष्ट हो जाता हैं कि इतने सूक्ष्म काल ( 1/ 33.750 सेकंड ) की गणना भी भारत के आचार्य कर सकते थे। इसी तरह समय की सबसे बड़ी इकाई कल्प को माना गया है। इस बड़ी इकाई कल्प की गणना भी इस प्रकार है –
1 कल्प | 1000 चतुर्युग या 14 मन्वंतर |
1 मन्वंतर | 71 चतुर्युग |
1 चतुर्युग | 43,20,000 वर्ष |
प्रत्येक चतुर्युग के संधि काल में कुछ संधि वर्ष होते है । उन्हेंजोड़ने पर 14 मनवंतरो के कुल वर्ष 1000 महायुगो ( चतुर्युगो ) के बराबर हो जाते है । इस समय श्वेत वाराह कल्प चल रहा है। इस कल्प का वर्तमान में सातवा मन्वंतर है जिसका नाम वेवस्वत हैं। वेवस्वत मन्वंतर के 71 महायूगो में से 27 बीत चुके हैं तथा 28 वे चतुर्युगी के भी सतयुग , त्रेता तथा द्वापर बीत कर कलियुग का 5125 वा वर्षे आगामी वर्ष चैत्र प्रतिपदा से प्रारंभ होगा । इसका अर्थ है कि श्वेत वाराह कल्प के 1,97,20,49,123 वर्ष बीत चुके हैं। अर्थात् सृष्टि का प्रारंभ हुए 2 अरब वर्षे हो गए हैं और आज के वैज्ञानिक भी पृथ्वी की आयु की 2 अरब वर्ष ही बताते हैं।
आपके अमूल्य सुझाव, क्रिया प्रतिक्रिया स्वागतेय है।
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2 thoughts on “विक्रम संवत् की प्रमाणिकता एवं सटीक गणना विज्ञान से भी आगे”