मृत्यु का रहस्य और शास्त्रों के अनुसार मृत्यु (Death) आने के पूर्व संकेत

मृत्यु सृष्टि का अटल सत्य है, जिसे कोई टाल नहीं सकता। यह केवल जीवन का अंत नहीं, बल्कि एक अनिवार्य सत्य, एक यात्रा, या एक परिवर्तन के रूप में देखा जाता है। सनातन धर्म में मृत्यु (Death) को एक नए जीवन का प्रारंभ माना जाता हैइसे भयभीत होने की बजाय स्वीकार करने और आत्मिक उन्नति के लिए एक अवसर के रूप में देखा जाता है।

मृत्यु जीवन का अंत है, जब शरीर के सभी जैविक कार्य रुक जाते हैं। यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जो हर जीवित प्राणी के साथ होती है। मृत्यु के बाद शरीर का विघटन शुरू हो जाता है और यह प्रकृति में वापस मिल जाता है। विभिन्न धर्मों और दर्शनों में मृत्यु को अलग-अलग तरीकों से समझाया गया है, जैसे कि आत्मा का परलोक में प्रवेश, पुनर्जन्म, या शाश्वत शांति। मृत्यु को लेकर मनुष्य के मन में कई प्रश्न और भय होते हैं, लेकिन यह जीवन का एक अटल सत्य है।

मृत्यु क्या है ?

1. श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार (अध्याय 2, श्लोक 20) मृत्यु क्या है

“न जायते म्रियते वा कदाचिन्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः। अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे।।”

अर्थात, आत्मा न कभी जन्म लेती है और न मरती है। यह अजन्मा, नित्य, शाश्वत और पुरातन है। शरीर के नष्ट होने पर भी यह नष्ट नहीं होती। यह शाश्वत है और केवल शरीर बदलती है।

2. पुराणों के अनुसार मृत्यु क्या है

सनातन धर्म में पुराणों के अनुसार, मृत्यु जीवन का एक अटूट और प्राकृतिक हिस्सा है। यह शरीर और आत्मा के बीच के संबंध का अंत माना जाता है। पुराणों में मृत्यु को एक संक्रमणकालीन अवस्था के रूप में देखा गया है, जहां आत्मा एक शरीर को छोड़कर दूसरे शरीर में प्रवेश करती है। यह प्रक्रिया पुनर्जन्म के चक्र (संसार) का हिस्सा है।

  1. आत्मा की अमरता: पुराणों के अनुसार, आत्मा अजर और अमर है। मृत्यु केवल शरीर का नाश है, आत्मा का नहीं। आत्मा एक शरीर को छोड़कर नए शरीर में प्रवेश करती है।
  2. मृत्यु की अनिवार्यता: पुराणों में मृत्यु को जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा माना गया है। इसे भयभीत होने की बजाय स्वीकार करने और आत्मिक उन्नति के लिए एक अवसर के रूप में देखा जाता है।

संक्षेप में, पुराणों के अनुसार मृत्यु शरीर का अंत है, लेकिन आत्मा की यात्रा का एक नया चरण है। यह कर्म और धर्म के सिद्धांतों से जुड़ी हुई है और मोक्ष की प्राप्ति तक जारी रहती है।

3. आधुनिक विज्ञान के अनुसार मृत्यु क्या है

आधुनिक विज्ञान के अनुसार, मृत्यु शरीर के जीवन समर्थन कार्यों के पूरी तरह से बंद हो जाने की स्थिति है। इसे आमतौर पर निम्नलिखित चरणों में परिभाषित किया जाता है:

  1. क्लिनिकल मृत्यु (Clinical Death):
  • यह वह स्थिति है जब हृदय की धड़कन और सांस रुक जाती है।
  • मस्तिष्क को रक्त और ऑक्सीजन की आपूर्ति बंद हो जाती है।
  • इस स्थिति में, यदि तुरंत चिकित्सकीय हस्तक्षेप किया जाए, तो व्यक्ति को वापस जीवित किया जा सकता है।

2. जैविक मृत्यु (Biological Death):

  • यह वह स्थिति है जब शरीर के सभी अंग और कोशिकाएं काम करना बंद कर देती हैं।
  • मस्तिष्क की कोशिकाएं स्थायी रूप से नष्ट हो जाती हैं, और व्यक्ति को वापस जीवित नहीं किया जा सकता।
  • शरीर में अपघटन (Decomposition) की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।

3. मस्तिष्क मृत्यु (Brain Death):

  • यह वह स्थिति है जब मस्तिष्क के सभी कार्य स्थायी रूप से बंद हो जाते हैं।
  • इसमें मस्तिष्क के स्टेम (Brain Stem) का काम करना बंद हो जाता है, जो श्वास और हृदय गति को नियंत्रित करता है।
  • इस स्थिति में व्यक्ति को जीवित नहीं रखा जा सकता, भले ही हृदय और फेफड़े मशीनों की मदद से काम कर रहे हों।

मृत्यु की यह परिभाषा चिकित्सा विज्ञान और तकनीकी विकास के साथ विकसित हुई है। आधुनिक चिकित्सा प्रणाली में, मृत्यु को एक प्रक्रिया के रूप में देखा जाता है, न कि केवल एक घटना के रूप में।

शास्त्रों के अनुसार मृत्यु (Death)आने के पूर्व संकेत

हिंदू शास्त्रों में मृत्यु से पहले कुछ संकेतों का वर्णन मिलता है, जिन्हें मृत्यु पूर्व लक्षण कहा जाता है। विभिन्न ग्रंथों जैसे गरुड़ पुराण, अग्नि पुराण, योग वशिष्ठ और अन्य धर्मशास्त्रों में इन संकेतों का उल्लेख किया गया है।

1. स्वप्न (Dreams) में संकेत

  • यदि व्यक्ति बार-बार मृत परिजनों, यमदूतों, अंधकार, उल्टी गंगा या नदी पार करने, टूटी हुई माला, सूखे वृक्ष आदि के दर्शन करे, तो यह मृत्यु का संकेत हो सकता है।
  • स्वप्न में सफेद या काले कबूतर, उल्लू, कौआ, या गिद्ध देखना भी अशुभ माना जाता है।

2. शारीरिक परिवर्तन (Physical Changes)

  • व्यक्ति की परछाई नहीं दिखती या बहुत धुंधली हो जाती है।
  • नाक, कान, या आंखों का तेज़ी से कमजोर होना।
  • शरीर से अचानक दुर्गंध आने लगना।
  • जीभ का सूख जाना और स्वाद खत्म हो जाना।

3. मानसिक और भावनात्मक बदलाव (Mental & Emotional Changes)

  • व्यक्ति को अपने जीवन के प्रमुख घटनाक्रम याद आने लगते हैं।
  • वह अचानक से शांत और गंभीर हो जाता है।
  • उसे परिजनों और परिचितों से मिलकर अजीब-सा मोह या विरक्ति होने लगती है।
  • वह अनजाने में मृत्यु की बात करने लगता है।

4. पशु-पक्षियों द्वारा संकेत (Omens from Animals & Birds)

  • कुत्ते का व्यक्ति को देख कर रोना या भूंकना।
  • गाय का अचानक से व्यक्ति की ओर देख कर रोना।
  • कौआ या उल्लू घर की छत पर लगातार बोलें या घर के आस-पास घूमते रहें।

5. प्रकृति और पंचतत्वों के संकेत (Signs from Nature & Elements)

  • घर में अचानक बिना कारण दीपक या दिए का बुझ जाना।
  • किसी शुभ कार्य के दौरान वस्त्र या माला का टूट जाना।
  • आसमान में अचानक से अपशकुन वाले बादल या धुएं जैसी आकृति दिखना।

6. चिकित्सा विज्ञान और मृत्यु के संकेत

आयुर्वेद और योग शास्त्र में मृत्यु से पहले कुछ शारीरिक बदलाव बताए गए हैं, जैसे—

  • नाड़ी का बहुत धीमा या अनियमित हो जाना।
  • त्वचा का ठंडा पड़ना और शरीर में कंपन महसूस होना।
  • जीभ का रंग नीला या काला पड़ना।
  • व्यक्ति का बेहोश रहना और आंखों में चमक खत्म हो जाना।

निवारण और उपाय

  • गरुड़ पुराण में बताया गया है कि यदि ऐसे संकेत दिखें, तो भगवान के नाम का जाप करें और गंगा जल, तुलसी दल, या पंचगव्य ग्रहण करें।
  • महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें।
  • गाय को भोजन कराएं और ब्राह्मणों को दान दें।
  • घर में श्रीमद्भागवत कथा या रामायण पाठ करें।

निष्कर्ष: ये सभी संकेत केवल धार्मिक दृष्टिकोण से बताए गए हैं और इनका अर्थ यह नहीं कि मृत्यु निश्चित ही आ जाएगी। लेकिन यदि ऐसे लक्षण दिखें, तो आध्यात्मिक साधना और पुण्य कर्मों में मन लगाना चाहिए।

निष्कर्ष

सनातन धर्म में मृत्यु (Death) को जीवन का अंत नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत माना जाता है। मृत्यु के बाद की यात्रा, प्रेत योनि, स्वर्ग-नरक और पुनर्जन्म की प्रक्रिया व्यक्ति के कर्मों पर निर्भर करती है। अच्छे कर्म करने वाले व्यक्ति को स्वर्ग की प्राप्ति होती है, जबकि बुरे कर्म करने वाले को नरक में जाना पड़ सकता है। अंततः, मोक्ष प्राप्त करना ही हर आत्मा का लक्ष्य होता है, जिससे वह जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो सकती है।

खास आपके लिए –

(Disclaimer – सनातन का यह लेख शास्त्रों, हिन्दू धर्म की धार्मिक मान्यताओ पर आधारित है। इसे भयभीत होने की बजाय स्वीकार करने और आत्मिक उन्नति के लिए एक अवसर के रूप में देखा जाना चाहिये । हम इसकी पुष्टि नहीं करते है। )

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