सोमनाथ(Somnath) का रहस्य : जहाँ शिवलिंग हवा में तैरता था।

सोमनाथ(Somnath) का रहस्य

सोमनाथ मन्दिर कहा स्थित हैं ?

सोमनाथ ( Somnath ) मन्दिर वर्तमान गुजरात राज्य के काठियावाड़ क्षैत्र (प्रभास क्षेत्र) में भगवान शिव का विश्व प्रसिद्ध मन्दिर स्थित हैं। भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में सबसे प्रथम ज्योतिर्लिंग सोमनाथ को माना गया है।

सोमनाथ मन्दिर का पौराणिक महत्त्व।

ऋग्वेद में सोमनाथ का वर्णन मिलता हैं कि इस मन्दिर का निर्माण स्वयं चंद्रमा ने किया था। चंद्रमा यानी सोम को दक्ष प्रजापति ने क्षय रोग होने का शाप दिया। इस शाप की मुक्ति के लिए चन्द्रमा ने भगवान शिव की तपस्या की। इससे शिव प्रसन्न हुए और चंद्रदेव को वरदान दिया। और चन्द्रमा ने इस शिवलिंग की स्थापना कर मन्दिर का निर्माण करवाया।

इस ज्योर्तिलिंग की महिमा हमारे धर्मग्रंथों – स्कन्द पुराण, श्री मद्भागवत गीता और महाभारत जैसे ग्रंथो में बताई गई हैं। भगवान सोमनाथ के दर्शन एवम् पूजन करने से भक्तो के जन्मों के पाप नष्ट होकर पुण्यों कि प्राप्ति होती हैं। जिससे मोक्ष का मार्ग खुल जाता है। हमारी सनातन संस्कृति में मोक्ष को ही जीवन का उद्देश्य बताया गया है। सोमनाथ मन्दिर में प्राचीन शिवलिंग चुम्बकीय गुण के कारण हवा में तैरता था।

मुस्लिम आक्रांताओं द्वारा किए गए हमले और लूटपाट

Image Source – http://kshatriyasanskriti.com

पौराणिक सोमनाथ मन्दिर कि विशालता एवं हिन्दुओं की अपार आस्था को देख कर अरब यात्री अलबरूनी ने अपने यात्रा वृत्तान्त में इसके विवरण से प्रभावित होकर –

आक्रांता महमूद गजनवी का सन् 1025 में पहला हमला

आक्रांता महमूद गजनवी ने सन् 1025 में मन्दिर पर आक्रमण किया। गजनवी ने मन्दिर की सम्पत्ति को लुटा और मन्दिर को नष्ट कर दिया। इस आक्रमण मे करीब 5000 की सेना के साथ गजनवी ने आक्रमण किया जिसमें मन्दिर की रक्षार्थ हजारों हिन्दुओं ने अपना बलीदान दिया। कहते हैं हमले के समय मन्दिर के दर्शनार्थी, पुजारी और आसपास के ग्रामीण हिन्दू निहत्थे थे। इतिहासकारों के अनुसार – राजा भीम और मालवा के राजा भोज ने इस मन्दिर का फिर से निर्माण कराया।

अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति नुसरत खा का सन् 1297 में दूसरा हमला

सोमनाथ मन्दिर पर दूसरा बड़ा आक्रमण सन् 1297 में दिल्ली सल्तनत के अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति नुसरत खा ने हमला किया और मन्दिर को दूसरी बार नष्ट कर दिया। इस आक्रमण के बाद वहा के हिन्दू राजाओं ने पुनः बनवाया।

गुजरात के सुल्तान मुजफ्फर शाह का सन् 1395 में तीसरा हमला

तीसरी बार सन् 1395 में गुजरात के सुल्तान मुजफ्फर शाह ने मंदिर को लूट कर तुड़वा दिया। मंदिर को लूट कर नष्ट करने का कारण हिन्दू धर्म एवम् इसकी आस्था को कम करना था। लेकिन हिन्दू राजाओं द्वारा तीसरी बार जीर्णोद्वार करवाया।

सुल्तान मुजफ्फर शाह के बेटे अहमद शाह का सन् 1412 में चौथा हमला

चौथी बार सुल्तान मुजफ्फर शाह के बेटे अहमद शाह ने सन् 1412 में मन्दिर को लूट कर तुड़वा दिया। इस बार राजाओं ने पुनः निर्माण कराया गया और उसे प्राचीन स्वरूप और भव्यता प्रदान की।

औरंगजेब का सन् 1665 में पांचवा हमला

सोमनाथ मन्दिर को मुगल औरंगजेब ने दो बार लुटा और मन्दिर को तुड़वा दिया। सन् 1665 में औरंगजेब ने मन्दिर को लूट कर तुड़वा दिया। उस तुर्क ने भारत के हजारों मन्दिरों को तुड़वाया है।

औरंगजेब द्वारा छठी बार पुनः हमला

भगवान सोमनाथ की बढ़ती आस्था को देख कर औरंगजेब ने एक सैन्य टुकड़ी को भेज कर मन्दिर को लुटा और हजारों हिन्दुओं का कत्ल करवाया।

इस प्रकार सोमनाथ मंदिर को मुस्लिम आक्रांताओं ने कुल 17 बार आक्रमण किए और मन्दिर को लूट कर तुड़वाया और हर बार हिन्दू राजाओं ने पुनः निर्माण कराया।

सोमनाथ मन्दिर का वर्तमान स्वरूप

सौराष्ट्र के राजा दिग्विजय सिंह जी ने 8 मई 1950 को मन्दिर की आधार शिला रखी। भगवान सोमनाथ का यह मन्दिर 150 फीट ऊंचा है। मन्दिर तीन भागों में – गर्भ गृह, सभामंडप और नृत्य मण्डप में विभाजित है। इसके शिखर पर 10 टन वजनी कलश हैं और 27 फीट ऊंचा ध्वज सदैव इस मन्दिर की शोभा बढ़ा रहा है।

1 दिसम्बर 1955 को भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया। इस नवीन सोमनाथ मन्दिर 1962 में पूर्ण निर्मित किया गया। सन्, 1970 में जामनगर की राजमाता ने अपने पति राजा दिग्विजय सिंह जी की स्मृति में दिग्विजय द्वार बनवाया। उस समय भारत के गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल चाहते थे कि सोमनाथ मंदिर का निर्माण भव्य हो लेकिन भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु इस मन्दिर निर्माण के पक्ष में नहीं थे।

के के . एल . मुंशी (कन्हैया लाल मुंशी) ने अपनी पुस्तक – पिलग्रीमेज टू फ्रीडम मे लिखते हैं कि जवाहर लाल नेहरु ने सोमनाथ मन्दिर के पुनः निर्माण के प्रस्ताव का हिन्दू पुनरुत्थानवाद कह कर विरोध किया। उस समय नेहरू से हुए बहस का वर्णन को उन्होंने अपनी पुस्तक में लिखते हैं –

केबिनेट की बैठक के अन्त में जवाहरलाल नेहरु ने मुझे बुलाकर कहा मुझे सोमनाथ के पुनरुद्वार के लिए किया जा रहा तुम्हारा प्रयास पसन्द नहीं आ रहा है। यह हिन्दू पुनरुत्थानवाद है। मैने जवाब दिया कि मैं घर जाकर जो कुछ घटित हुआ है उसके बारे में जानकारी दूंगा…..

इस प्रकार सोमनाथ मंदिर वर्तमान स्वरूप में तैयार हुआ। सोमनाथ मन्दिर 17 बार तोड़ा गया और सौराष्ट्र (जामनगर) के राजा ने हर बार मंदिर का पुनः निर्माण कराया लेकिन उनके इस कार्य को धीरे धीरे इतिहास से मिटाने का कृत्य भी हो रहा है।

सोमनाथ मन्दिर का विज्ञान

सोमनाथ मन्दिर का वास्तु और शिल्प अद्भुत है। मान्यताओं के अनुसार सृष्टि के प्रथम वास्तुविद भगवान विश्वकर्मा स्वयं ने इसकी संरचना तैयार की। इस मन्दिर में हवा में तैरता प्राचीन शिवलिंग था जो चुम्बकीय गुण के कारण हवा में तैरता था। जो आज भी विज्ञान की पहुंच से दूर है। मन्दिर की दीवारों में धातुओं की इस प्रकार परत लगाई गई की शिवलिंग चुम्बकीय शक्ति के कारण हवा में तैरता था। एक और रहस्य है वो बाण स्तम्भ जिसको लेकर विज्ञान आज भी अचंभित है।

बाण स्तम्भ का रहस्य

सोमनाथ मन्दिर के दक्षिण में समुद्र किनारे एक स्तंभ है। यह स्तंभ अति प्राचीन है । छठी शताब्दी में बाण स्तम्भ का उल्लेख मिलता हैं। इस बाण स्तम्भ के ऊपर पृथ्वी और एक तीर रख कर संकेत किया गया है कि सोमनाथ मन्दिर और दक्षिण ध्रुव के बीच पृथ्वी का कोई भूभाग नहीं है। “आसमुद्रान्त दक्षिण ध्रुव पर्यत अबाधित ज्योतिर्मार्ग ”

इस स्तम्भ को बाण स्तम्भ कहते हैं। कैसे हमारे ऋषियों और मुनियों ने हजारों वर्ष पहले ध्रुवों और पृथ्वी की संरचना के बारे में जान लिया था। कितना समृद्ध ज्ञान था। आज के विज्ञान से कितना आगे था। यहीं सनातन संस्कृति की विशालता है। आज सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या उस काल में भी लोगों को यह जानकारी थी कि दक्षिण ध्रुव कहा है और धरती गोल हैं। कैसे उन लोगों ने इस बात का पता लगाया होगा कि बाण स्तम्भ के सीध में कोई बाधा नहीं है। आज के युग में तो यह विमान और सेटेलाइट के माध्यम से ही पता लगाया जा सकता हैं।

अब दक्षिणी ध्रुव से भारत के पश्चिमी तट पर बिना किसी बांधा के जिस स्थान पर सीधी रेखा मिलती हैं, वहा ज्योतिर्लिंग स्थापित है। जिसे भारत के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में पहला माना जाता हैं। इस बाण स्तम्भ पर लिखें श्लोक की अन्तिम पंक्ति —

अबाधित ज्योतिर्मार्ग” भी किसी रहस्य से कम नहीं है। क्योंकि अबाधित और मार्ग तो समझ में आता है लेकिन ज्योतिर्मार्ग क्या है यह आज के विज्ञान से परे हैं।

निष्कर्ष (Conclusion)

भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में प्रथम ज्योर्तिलिंग सोमनाथ ज्योतिर्लिंग है। यह गुजरात के प्रभास क्षेत्र ( काठियावाड़) क्षैत्र में समुद्र के तट पर स्थित हैं । इसका निर्माण स्वयं चंद्रमा ने करवाया । भगवान शिव की तपस्या कर अपने शाप मुक्ति हेतु सोमनाथ मन्दिर का निर्माण करवाया। इस मन्दिर में विश्व का एक मात्र ऐसा शिवलिंग था जो चुम्बकीय शक्ति से हवा में तैरता था। मंदिर प्रांगण में बना बाण स्तम्भ का रहस्य आज भी विज्ञान के लिए भी रहस्य बना हुआ है। इस मन्दिर पर तुर्क आक्रांताओं ने 17 बार आक्रमण किए, मंदिर को लुटा और नष्ट किया। लेकिन इसका वैभव आज भी कायम हैं। भक्तो की आस्था में कमी नहीं हुई।

आपके बहुमूल्य सुझाव आमंत्रित हैं। क्रिया – प्रतिक्रिया स्वागतेय है ।

इसे भी पढ़े

1 thought on “सोमनाथ(Somnath) का रहस्य : जहाँ शिवलिंग हवा में तैरता था।”

Leave a comment