नागा साधुओं का रहस्य, 12 वर्ष कठोर तप एवं स्वयं का पिंडदान कर बनते है ।

Naga Sadhu : नागा साधु कुंभ मेले, माघ मेले जैसे खास मौकों पर ही नजर आते हैं। नागा साधु बनने से लेकर इन साधुओं का जीवन एवं उनके रहने का तरीका काफी रहस्‍यमयी भी है। नागा साधु बनने की प्रक्रिया कठिन और 12 वर्ष लंबी होती है।

कुंभ मेले के शाही स्नान में आपने युद्ध कला का प्रदर्शन करते हुए स्नान को जाते नागा साधुओं की हुजूम को अवश्य देखा होगा, लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये नागा साधु कौन होते हैं, कैसे बनते हैं, कहां और किस नाम से जाने जाते हैं ? आदिगुरु शंकराचार्य की ओर से स्थापित किए गए विभिन्न अखाड़ों में रहने वाले ऐसे साधु जो नग्न रहते हैं, शरीर पर धुनि की राख लपेटकर रखते हैं, युद्ध कला में पारंगत होते हैं उन्हें नागा साधु कहा जाता है ।

नागा साधु कैसे बनते है ?

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संतों के 13 अखाड़ों में सात अखाड़े ही नागा साधु बनाते हैं। ये हैं- जूना, महानिर्वाणी, निरंजनी, अटल, अग्नि, आनंद और आवाहन अखाड़ा, नागा साधु बनने की प्रक्रिया कठिन और 12 वर्ष लंबी होती है। नागा साधुओं के पंथ में शामिल होने की प्रक्रिया में लगभग छह साल लगते हैं। इस दौरान नए सदस्य एक लंगोट के अलावा कुछ नहीं पहनते। कुंभ मेले में अंतिम प्रण लेने के बाद वे लंगोट भी त्याग देते हैं और जीवन भर यूँ ही नग्न यानी दिगंबर रहते हैं।

कोई भी अखाड़ा अच्छी तरह जांच-पड़ताल कर ही योग्य व्यक्ति को ही प्रवेश देता है। पहले उसे लंबे समय तक ब्रह्मचारी के रूप में रहना होता है, फिर उसे महापुरुष तथा फिर अवधूत बनाया जाता है। अन्तिम प्रक्रिया महाकुंभ के दौरान होती है जिसमें उसका खुद का पिण्डदान तथा दण्डी संस्कार आदि कराया जाता है। इसे बिजवान कहा जाता है। अंतिम परीक्षा दिगंबर और फिर श्रीदिगंबर की होती है। दिगंबर नागा एक लंगोटी धारण कर सकता है, लेकिन श्रीदिगंबर को बगैर कपड़े के रहना होता है।

कुंभ में ही बनाए जाते हैं नागा साधु

चार जगह लगने वाले कुंभ में नागा साधु बनाए जाते हैं और हर जगह के अनुसार इन नागा साधुओं को अलग-अलग नाम दिए जाते हैं । प्रयागराज के कुंभ में नागा साधु बनने वाले को नागा, उज्जैन में बनने वाले को खूनी नागा, हरिद्वार में बनने वाले को बर्फानी नागा तथा नासिक में बनने वाले को खिचड़िया नागा कहा जाता है। नागा में दीक्षा लेने के बाद साधुओं को उनकी वरीयता के आधार पर पद भी दिए जाते हैं। इनमें कोतवाल, पुजारी, बड़ा कोतवाल,भंडारी, कोठारी, बड़ा कोठारी, महंत और सचिव के पद होते हैं। इनमें सबसे बड़ा और अहम पद सचिव का होता है।

नागा अखाड़े के आश्रम और मंदिरों में रहते हैं। कुछ तप के लिए हिमालय या ऊंचे पहाड़ों की गुफाओं में जीवन बिताते हैं । अखाड़े के आदेशानुसार यह पैदल भ्रमण भी करते हैं। इसी दौरान किसी गांव की मेड़ पर झोपड़ी बनाकर धुनी भी रमाते हैं।

नागा साधुओं का कठोर जीवन

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नागा साधु आम जीवन से दूर और कठोर अनुशासन में रहते हैं। इन्हें गुस्से वाला माना जाता है लेकिन वास्तविकता यह है कि ये किसी को नुकसान नही पहुंचाते। नागा संतों को कोई उकसाता है या परेशान करता है तो ये क्रोधित हो जाते हैं। नागा साधु शिव और अग्नि के भक्त माने जाते हैं। सामान्य तौर पर इनका सामान्य जनजीवन से कोई लेना-देना नहीं होता है। नागा साधु अधिकांश पुरुष ही होते हैं लेकिन अब कुछ महिलाएं भी नागा साधु बनने लगी हैं, लेकिन वे नग्न नहीं रहतीं बल्कि भगवा वस्त्र धारण करती हैं।

कोई कपड़ा न पहनने के कारण इन शिव भक्त नागा साधुओं को दिगंबर भी कहा जाता है. दिगंबर का मतलब जो आकाश को ही अपना वस्त्र मानते हों। कपड़ों के नाम पर पूरे शरीर पर धूनी की राख लपेटे नागा साधु कुंभ मेले में शाही स्नान के समय ही खुलकर सामने आते हैं और शाही स्नान के समय अपनी-अपनी मंडली के साथ आचार्य, महामंडलेश्वर , श्रीमहंत के रथों की अगुवाई करते हुए शाही स्नान कर पुण्य प्राप्त करते हैं।

ठंड से बचने के लिए नागा साधु योग करते हैं। अपने विचार और खानपान, दोनों में ही नागा साधु संयम रखते हैं। नागा साधु एक तरह से सैन्य पंथ है यानी युद्ध करने वाला और वे एक सैन्य रेजीमेंट की तरह बंटकर रहते हैं और अपने त्रिशूल, तलवार, शंख और चिलम से इस दर्जे को दर्शाते भी हैं। नागा साधु कुंभ के अवसर पर ही दिखाई देते हैं। कुंभ मेले में नागा साधुओं को लेकर खास आकर्षण  रहता है और भारतीयों के साथ ही विदेशियों में भी इनको जानने इनको जानने की चाह नजर आती है।

महर्षि वेद व्यास द्वारा स्थापित संन्यासी परंपरा

सबसे पहले महर्षि वेद व्यास ने संगठित रूप से वनवासी संन्यासी परंपरा शुरू की। उनके बाद ऋषि शुकदेव ने, फि…अनेक ऋषि और संतों ने इस परंपरा को अपने-अपने तरीके से नया आकार दिया. भारतीय सनातन धर्म के वर्तमान स्वरूप की नींव आदि गुरु शंकराचार्य ने रखी थी शंकराचार्य का जन्म 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व में हुआ था जब भारतीय जनमानस की दशा और दिशा बहुत अच्छी नहीं थी और तमाम आक्रांता धन संपदा के लिए भारत की ओर खिंचे चले आ रहे थे. कुछ  खजाने को अपने साथ ले गए तो कुछ भारत में ही बस गए, लेकिन इससे शांति-व्यवस्था में व्यवधान आया और साथ ही  ईश्वर, धर्म, धर्मशस्त्रों के तर्क, शस्त्र और शास्त्र सभी में चुनौतियों का सामना करना पड़ा. ऐसे में शंकराचार्य ने सनातन धर्म की रक्षा के लिए देश के चार कोनों पर चार शंकराचार्य पीठ- गोवर्धन पीठ, शारदा पीठ, द्वारिका पीठ और ज्योतिर्मठ पीठ की स्थापना की

धर्म रक्षार्थ नागा साधुओं का सहयोग

मठ-मंदिरों की सम्पत्ति बचाने और सनातन धर्म की रक्षा के लिए विभिन्न संप्रदायों की सशस्त्र शाखाओं के रूप में अखाड़ों की स्थापना हुई थी। सामाजिक उथल-पुथल के उस युग में केवल आध्यात्मिक शक्ति से ही इन चुनौतियों का मुकाबला करना संभव न देख शंकराचार्य ने जोर दिया कि युवा साधु व्यायाम करके अपने शरीर को सुदृढ़ बनाएं और अस्त्र-शस्त्र में भी निपुण बनें। इसी के चलते ऐसे मठ बनाए गए जहां व्यायाम के साथ शस्त्र संचालन का भी अभ्यास कराया जाता था और इन मठों को ही अखाड़ा नाम से जाना गया।

साधारण भाषा में अखाड़े उन स्थानों को कहा जाता है जहां पहलवान कसरत करते हैं और दांवपेंच सीखते हैं। बाद में कई और अखाड़े अस्तित्व में आए। पहला अखंड आह्वान अखाड़ा’ साल 547 में बना था। शंकराचार्य ने अखाड़ों को मठ, मंदिरों और श्रद्धालुओं की रक्षा के लिए शक्ति का प्रयोग करने के निर्देश दिए थे और उस दौर में इन्हीं अखाड़ों ने सुरक्षा कवच का काम किया।

अखाड़ों की स्थापना

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विदेशी आक्रमण की स्थिति में कई बार राजा-महाराजा भी अखाड़ों के नागा साधुओं से सहयोग लिया करते थे। इतिहास में ऐसे कई युद्धों का वर्णन मिलता है जिनमें 40 हजार से ज्यादा नागा योद्धाओं ने भाग लिया। अहमद शाह अब्दाली के मथुरा-वृन्दावन के बाद गोकुल पर आक्रमण करने पर नागा साधुओं ने मुकाबला करके गोकुल की रक्षा की थी। अखाड़ों के प्रमुखों ने भारतीय संस्कृति और दर्शन के सनातन मूल्यों का अध्ययन और अनुपालन करते हुए संयमित जीवन व्यतीत करने का आदेश दिया।

इस समय 13 प्रमुख अखाड़े हैं जिनमें प्रत्येक में शीर्ष पर महन्त आसीन होते हैं। इनमें सात शैव संन्यासी, तीन बैरागी वैष्णव और तीन उदासीन संप्रदाय के हैं –

शैव संन्यासी संप्रदाय के 7 अखाड़े हैं- 

  • 1. श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी
  • 2. श्री पंच अटल अखाड़ा 
  • 3. श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी 
  • 4. श्री तपोनिधि आनंद अखाड़ा पंचायत
  • 5. श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा 
  • 6. श्री पंचदशनाम आवाहन अखाड़ा
  • 7. श्री पंचदशनाम पंच अग्नि अखाड़ा

बैरागी वैष्णव संप्रदाय के 3 अखाड़े हैं –

  • 1. श्री दिगम्बर अनी अखाड़ा
  • 2. श्री निर्वानी अनी अखाड़ा 
  • 3. श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़ा  

उदासीन संप्रदाय के 3 अखाड़े हैं

  • 1. श्री पंचायती बड़ा उदासीन अखाड़ा
  • 2. श्री पंचायती अखाड़ा नया उदासीन
  • 3. श्री निर्मल पंचायती अखाड़ा

सांसारिक जीवन से दूर

संप्रदाय से जुड़े साधुओं का संसार और गृहस्थ जीवन से कोई लेना-देना नहीं होता। गृहस्थ जीवन जितना कठिन होता है उससे सौ गुना ज्यादा कठिन नागाओं का जीवन है। नागा साधुओं का अभिवादन मंत्र ‘ॐ नमो नारायण’ है और नागा साधु शिव के भक्त होते है । वे त्रिशूल, डमरू, रुद्राक्ष, तलवार, शंख, कुंडल, कमंडल, कड़ा, चिमटा, कमरबंध या कोपीन, चिलम, धुनी के अलावा भभूत आदि रखते हैं।

नागा साधु गुरु की सेवा, आश्रम का कार्य, प्रार्थना, तपस्या और योग क्रियाएं करते है। नागा साधु सुबह चार बजे उठकर नित्य क्रिया व स्नान के बाद पहला काम शृंगार का करते हैं। इसके बाद हवन, ध्यान, बज्रोली, प्राणायाम, कपाल क्रिया व नौली क्रिया करते हैं। पूरे दिन में एक बार शाम को भोजन करते हैं। ऐसा माना जाता है कि नाग, नाथ और नागा परंपरा गुरु दत्तात्रेय की परंपरा की शाखाएं हैं। नवनाथ की परंपरा को सिद्धों की बहुत ही महत्वपूर्ण परंपरा माना जाता है। गुरु मत्स्येंद्र नाथ, गुरु गोरखनाथ, साईनाथ बाबा, गजानन महाराज, कनीफनाथ, बाबा रामदेव, तेजाजी महाराज, चौरंगीनाथ, गोपीनाथ, चुणकरनाथ, भर्तृहरि, जालन्ध्रीपाव आदि घुमक्कड़ी नाथों में ज्यादा रही।

आपके अमूल्य सुझाव क्रिया – प्रतिक्रिया स्वागतेय है ।

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